Book Title: Jayanti Charitram
Author(s): Malayprabhsuri, Vijayakumudsuri
Publisher: Manivijay Ganivar Granthmala

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Page 330
________________ 15% // 317 // जयन्त्या . गृहीता दीक्षा भगवत्पार्थे / य मवफलए जे उण अक्खेहिं हीरन्ति // 59 // एएहिं सोएहिं पगईए नियविसममग्गेसु / हीरन्ता जडजीवा पडन्ति भवरूद्दजलहिम्मि // 60 // इच्चाइ चिन्तिऊण राया नरसुन्दरोवि पुत्तस्स / दाउं रजं विहिणा काउं जिणसाहुपूयाई // 11 // संवेगसमावनो अणसणपडिवत्तिसत्तिसमत्थेणं / हणिउण मोहरायं सग्गसिरिं वरइ लीलाए // 62 // इय पश्चिन्दियतुरए चवले दमिऊण सुद्धमग्गम्मि / गच्छन्ता सप्पुरिसा कमेण पाविन्ति सिद्धिपुरि // 63 // ॥इति स्पर्शनेन्द्रियविषये अवंतिनाथबंधुमत्योः कथानकं समाप्तमिति // एवमादि प्रश्नोत्तरप्रदानप्रकारेण संशयान्धकारतिरस्काररविमण्डलानुकारेण सा जयन्ती श्राविका कमलिनीव प्रमोदतः कण्टकितवपुर्नाला विकस्वरवदनेक्षणयुगलकमला श्रीमन्तं श्रीवर्धमानस्वामिनं जिनं प्रणम्य विज्ञप्तिका कर्तुमारभे तिहुयणतारणसत्तं तुमम्मि करुणायरम्मि सम्पत्ते / भवसायरम्मि अञ्जवि न तीरपत्ता कहं होमि ? // 1 // ता काऊण पसायं आरोवेऊण जाणवत्तम्मि / चारित्तम्मि महायस ! खिप्पमहं नेसु सिद्धिपुरिं // 2 // इय विनत्तो भयवं संवेगपरवसाए सयमेव / सिग्धं वियरइ दिक्खं वीरजिणिन्दो जयन्तीए // 3 // देवाणुप्पिए तुमए छन्जीवनिकायवच्छला दिक्खा / पालेयवा सम्मं निच्चं चिय अप्पमत्ताए // 4 // दमियत्वा पश्चिन्दियतुरया पगईए चञ्चलसहावा / आरूढा जेहि जिया निजन्ति भवाडविवियडं // 5 // संसारम्मि सुसाणे पञ्चनमोक्कारमन्तजावेण / तह जइयत्वं चरणे मोहविसाओ छलइ न जहा // 6 // कोहो दव्वु व जलिओ समियबो झत्ति उवसमजलेण / माणो महागिरिन्दो दलियबो विणयवजेण // 7 // मायावंसकुडंगी सिवपुरपहचरणरोहदुल्ललिया / आमूलं छित्तबा अजवपरसुप्पहारेण // 8 // लोहो जलही तुमए सोसेयवो सयावि तोसेण / गरू वियरह दिक्खं वीरजिणिन्दोजपञ्चन्दियतुरया पगईए चञ्चलमहामोहविसाओ छलइ l // 317 //

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