Book Title: Jayanti Charitram
Author(s): Malayprabhsuri, Vijayakumudsuri
Publisher: Manivijay Ganivar Granthmala
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________________ जिनदत्तेन विद्यार्थी जयन्तीप्रकरणइतिः / हारप्रभा* वाढता। // 304 // CACANCHA%CE% गओऽम्हि विजापढणत्थं तुम्ह पयमूले // 61 // जणणीजणयसमाणो विजत्थीणं तुमंति सुहकिती। देसन्तरेसु पसरइ ससिसंखसमुञ्जला जेण // 62 // इय विनत्ते तेणं उज्झाओ भणइ वच्छ ! पाढइस्सामि / भोयणसामग्गि पुण मग्गसु धणसत्यवाहंति // 63 // अनेवि धम्मचट्टा जम्हा भुञ्जन्ति तस्स गेहंमि / तेणुत्तं तुह वयणा से दाही सिट्ठीति पइदियहं // 64 // तबिणयरंजिएणं उज्झाएणं घरम्मि सिद्धिस्स / सो नीओ तो सेट्ठी बोतो अज्झावएणेवं // 65 // देसन्तराओ पत्तो विजत्थी तुम्ह भोयणेणेस / निच्चिन्तो पढइ सुहं तुम्हाणं होउ सेयंति // 66 // धणसिविणावि भणिया धूया हारप्पहा समीवत्था / निच्चं इमस्स वच्छे ! दायत्वं भोयणं तुमए // 67 // हरिसेणेसो चट्टो चिन्तइ सुवे घयं पलुटुं ति / तिकढियदुद्धे निद्धे अचिंतिओ सक्करापाओ॥ 68 // अहवा वल्लूरेणं मजारो दामिओ जहा सुहिओ। होइ तहाऽहं मन्ने होक्खामि सुद्दी लहुं चेव / / 69 // इच्चाइ चिन्तिऊणं निचं कुसुमेहि परिणयफलेहिं / हारप्पर कुमारि उवयरइ वियड्डवयणेहिं // 70 // अक्खइ अक्खाणाई मयणानलइन्धणाई विविहाई / कन्दप्पदीवणं तह कुणइ पगभं च परिहासं // 71 // तो कइवयदिवसेहिं पारिहासम्भासपासपडिबद्धा / विद्धा पञ्चसरेहिं मोहणमाईहिं बाणेहिं // 72 // अन्नं च-अणुदियकुसलं परिहासपेसलं लडहवाणिदुल्ललियं / आलवणं चिय महिलाण मोहणं किं स्थ मृलीहिं ? // 73 // अणुदियहं वहन्तं परिहासे विविहपयडियविलासे / अब्भासट्ठियं पुरिसं लय व पमया पवजंति // 74 // ता मयणपरिवसाए गाहापढमक्खरेहिं जिणदत्तो। वोत्तो कहिए सव्वे वुत्तन्ते हिट्ठचित्ताए // 75 // | तद्यथा-हसियं तुह हरइ मणं रमियंपि विसेसओ न सन्देहो। मयणग्गितावियाऽहं मं निवव संगमजलेण // 76 //

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