Book Title: Jayanti Charitram
Author(s): Malayprabhsuri, Vijayakumudsuri
Publisher: Manivijay Ganivar Granthmala

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Page 320
________________ // 307 // एवं मथुरावणिकेन कपटाद् | धारिणी देवी जिणिन्दधम्म सेवी सम्मत्तनिच्चलो सड्डो / जाओ मझुवआरी चट्टो एसो ति कलिऊण // 11 // हारपहं नियध्वं परिणावइ तं महत्थरिद्धीए / एवं जिणदत्तेणं पत्तं कालेणं जं इठं // 111 / / एवं महुरावणिओ मुणिऊण कहाणयं गओ महुरं / चिन्तइ विविहोवाए नियकजए साहणट्ठाए // 112 // अनोवायालाहे सो पावो चक्खुलोलुओ / मुद्धो कोडिं दीणाराणं दाऊणं सिद्धविजाणं // 113 / / पाणाणं भणइ इमं घडह मए कहवि धारणिं देविं / विजावलेणं तेहिं वि नयरीए विउविया मारी // 114 // आदनेणं रना भणिया पाणा इमं तलारत्तं / सबोवद्दवरक्खाकए बिईनं मए तुम्ह // 115 // तेहिवि भणियं सामीय ! सम्मं नाऊण विनविस्सामो / तो विजासचीए कहिया अन्तेउरे मारी / / 116 // जोयन्तेणं रन्ना अवरोहे धारिणीए सुत्ताए / पासे बालाईणं दिवाइं अंगुवंगाई // 117 // तो रुट्ठणं रन्ना केसग्गाहेण कड्डिङ ताण / पाणाण निग्गहत्थं समप्पिया सन्तिकरणत्थं // 118 // तेहिंवि भणियं सामिय ! संतिकरी होइ निग्गहिजन्ती / पच्छन्नं चिय रमा वुत्तं एवं करेहित्ति // 119 // तो रयणीए तीए कीरन्ते निग्गहे महुरवपिओ / कयसंकेओ सिग्धं समागओ तप्पएसम्मि // 120 // एयाए मुत्तीए एयं कम्मं न होइ एयाए / एवं तवयणेणं सुहारसेणेव सा सित्ता // 121 // पुणरवि वणिएणुत्तं पाणाणं सम्मुहं जहा एयं / मुञ्चह तुम्भे अहवा नो मुश्चह में विणासेह // 122 // जइवा दीणाराणं कोडिं वित्तूण एह समप्पेह / रायभएणं जम्हा दूरे देसन्तरे जामि // 123 // तो तस्स अप्पिया सा तेण समं जाइ धारिणी देवी। चिन्तइ य एस कोवि हु? | मह जीवियदायगो जाओ // 124 // तो एस पाणनाहो मह जेण धणेण जीविएणावि / तेहिं मारिजन्ती सव्वहा रक्खिया दीणा // 125 / / तेणवि महेसरेणं समयणपरिहासमहुवयणेहिं / सुवसीकया सुनिन्भरपेमरसुल्लसियसवंगा / / 126 / / पत्ताणि वसन्तपुरे प्राप्ता। | | 307 //

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