Book Title: Jayanti Charitram
Author(s): Malayprabhsuri, Vijayakumudsuri
Publisher: Manivijay Ganivar Granthmala
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________________ // 311 // म्मि गुरुपबन्धेण / आढत्ता किल जला करूणासरणिकचित्तेहिं // 3 // कोसल्लियं महग्धं गणिऊणं तो नरिन्दपयमले / मनुष्यगच्छन्ति सावया ते कुष्णन्ति विन्नत्तियं एवं // 4 // जह देव अम्ह होही जत्ता जिण मन्दिरम्मि अट्ठदिणे / तम्हा कुणसु मांसपसायं घोसावहह अमाघायं / / 5 / / तुम्ह जणओवि सामिय ! घोसाविन्तो इमम्मि नयरम्मि / अट्टदिणाणि अमारिं तम्हा भक्षको मलद्वियं कुणम् // 6 // तरूणोवि देव ! गरूया चउद्दिसिं वित्थरन्ति साहाहिं / दलकुसुमफलोवेया धरन्ति मूलट्ठियं जम्हा जातो // 7 // इय विनत्ते रत्ना पडिवनं सावयाण वयणमिण / किन्तु संयं रसणिन्दियलोलो आइसइ सूयारं // 8 // अदिण- सोदासजोग्यमंसं संगहियवं जओ विणा तेण / नहु होइ भोयणं मह हीही रसगिद्धदुचरियं // 9 // आएसोत्ति भणित्ता सूयारेणवि नृपः। जमिह संगहियं / तं कहवि पमाएणं गहिय सवं बिरालेणं // 10 // तो चिन्तइ स्यारो न पहुप्पइ भोयणम्मि जं मंसं / तो राया परिकप्पा मारोऽवस्सं दवइ मज्झ // 11 // भवियवयावसेणं दिलृ चिन्ताउरेण डिम्भरूवं / कत्था चत्तं केणवि मयारेण तो गहियं // 12 // पच्छवं परिपकं तं मंसं सुरहिदवसम्मिस्सं / अइरसंति नरिन्दो सूयारं पुच्छए एसो | // 13 // अछलं तुह कहसु फुड कस्सेसं रत्तसायमइसरसं / तेणवि सिटुं सच्चं लुद्धो रायावि भणइ इमं // 14 // भद्द ! तुम निचं चिय रत्तसायमइनिद्धं / अवरावरदवेहिं सुसम्भियं कुणसु महजोग्गं // 15 // सूयारेणं वुत्तं सम्पजह नाह ! कहमिमं निचं ? / पञ्चहया मह पुरिसा तुज्झ सहाया हविस्सन्ति / / 16 // आणिय किंपि अणाहं माणुस्सं रत्तसायमणुदियहं / दायत्वंति निवेण भणिए तह कुणइ सूयारो // 17 // इय निच्चं किज्जन्ते अणाहलोओ विणासिओ बहुओ / नायमिमं मन्तीहिं विसरियं तेहिं दुहिएहिं // 18 // यतः-स्वेच्छया कुरुते स्वामी यत् किंचन यतः ततः। IP311 // RRC

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