Book Title: Jayanti Charitram
Author(s): Malayprabhsuri, Vijayakumudsuri
Publisher: Manivijay Ganivar Granthmala

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Page 275
________________ बपन्तीप्रकरण वृतिः / // 262 // धनंतरिसरिसेहिं सिग्छ चिय दिन्नमारोग्गं // 52 // गिद्धो सो रायरिसी महुराहारेसु दिवसेजासु / विहरन्तेसुं गुरुसु मन्द- पुण्डरीक मणो लक्खिओ रमा // 53 // मणिओ य तं महायस धन्नो सुगुरूण पायकमलंमि / फुल्लन्धय व लीणो सुयमयरन्दं सया नृपवचपियसि // 54 // अवरावरपणयमहानरिंदमणिमउडकिरणकब्बुरियं / तुह चरणजुयं संसइ जयंमि मुणिराय ! रायतं // 55 // नाद् एयंमि गच्छगहणे तुमंमि मुणिसीह संचरन्तमि / मयकलहवियारेणं भवियर होइ रेण // 56 // सच्चपइन्ना गरूया उत्तम- दिगुरुणा सह कुलसंभवा भवन्ति त्ति / एसा जए पसिद्धी तुमए सच्चीकया धीर ! // 57 // नियकुलकमलदिवायर ! विहरसि तं जत्थ कण्डरीकजत्थ सुपयावो / न हवइ तत्थ पओसो तमभरपोसो किमिह चोजं? // 58 // सुदिद्वगुरूपक्खवाओ दियराओ कहवि तं न बद्धोऽसि / हिययजिणगुरुवहणो बन्धवमोहेण पासेण // 59 // पवणो व अपडिबद्धो अवरावरविसयदगमणोवि / अम्हाण विहारः। बोहणत्थं इत्थ पुणो दंसणं देज // 60 // इच्चाइयवयणेहिं गच्छ। सो कण्डरीयमुणिवसहो / चोइजन्तो पवयणसारेहिं अन्नदेसेसु // 61 // दुक्रतवचरणेणं तिविहेणं कण्डरीयरायरिसी / निप्पडिकम्मो जाओ कमा किसीभूयसवंगो // 12 // पवञ्जागहणओ तस्स वसंतस्स गच्छगहणंमि / गुरूमूलसुयरखंधे सज्झायज्झाणपुप्फफले // 64 // वरिससहस्सन्ते सहयारवणम्मि मंजरिजन्ते / रिउरायमि वसन्ते संकन्ते सबजियकन्ते // 65 // पसरन्ति चच्चरिओ वणे सुज्झंकारमहुरभमरीओ / कोइलकलावकलकलरमणीयउजाणराईसु // 66 // उद्दामकामकामिणिचरणपहारेण डोहले पुने। किंकिल्लितरू सोहइ वियसियसुमणाणुभावेण // 67 // कुरूवयवच्छा विलयापरिरंभारंभसे यसरस व / सोहंति कुसुमनिविडिरमयरन्दामन्दसुन्देरा // 68 // उम्मत्ततरूणिमयरसा गंडूसा सायरेण कोरकिओ। जंपइ बउलो तेसिं परिमलमिलियालिझंकारो // 69 // गन्धोदएण सिचा P262 //

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