Book Title: Jayanti Charitram
Author(s): Malayprabhsuri, Vijayakumudsuri
Publisher: Manivijay Ganivar Granthmala
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________________ श्री R जयन्तीप्रकरणवृत्तिः / // 272 // 4%A5%ESCE%A4%AR // 25 // गयणि व तंमि गरूए कविबुहदियरायगुरूपहापसरे / सिरिवप्पहद्रिसूरी तसो पत्तो दिणयरू व्य / / 26 / / तो तस्स बप्पम पायचारे तारयगुरुजोइजाइनिकारो / कमलायरंमि बप्पइराए विगलइ महामोओ / / 27 / / महुयरनुणिमहुरस्सरसागयव- सूरिणा यणेण अग्घदाणेण | आसणपयाणपणमणगउरविओ तेण राएण // 28 // सूरी धम्मकहाए चउविहाए दिणेसरपहाए / प्रतिबोधितो अवहरइ मोहतिमिरं पडिबोहइ भव्वकमलाई / / 29 // अक्खलियपयप्पवहा परमहिमगिरिन्दबप्पहट्टिस्स / पसरइ दियविन्द- तेवप्पइराजा। सुहा अह देवया सरस्सई तत्थ / / 30 // पक्खालियंमि तीए मिच्छाभिनिवेशपंकपडलम्मि / अवगयसुदेवसुहगुरुसुधम्मतत्तो भणइ तत्तो // 31 // बप्पइराओ राओ चिरकालाओ ममोरिं अहुणा / भयवं बहुकारूमो समागओ पुनजोगेण // 32 // अवियारियरमणीओ लोइयधम्मो इमो मए सामि ! / पडिवन्नो सम्पइ पुण, जिणधम्मं चेव काहामि // 33 / / दुरूज्झियसनासो जिणधम्मे होइ जह ममन्भासो / करेउ तहा पसाओ पूरय दिक्खाअभिप्पाओ // 34 // सोऊणं तब्वयणं गीयत्थो बप्पहट्टिसरिवरो / जम्पइ जिणधम्मु च्चिय कायव्यो होइ विबुहाण // 35 // किन्तु इमो सनासो लोइयमग्गेण जइवि पडिवनो। सम्मदसणलाहे तुह सहलो तहवि सो होही // 36 ॥सम्मदंसणरयणे मिच्छत्तमोहदलणदुल्लुलिए। मिच्छदिद्विसुयं पि हु सम्म चिय होइ जं भणियं // 37 // लोओ जइवि अलिओ बलिओ चिय बोहिवजियबहुओ। उवहासपरो होही अबोहिवीयजणुज्जुत्तो // 38 // तम्हा जिणुत्तसद्धा सुद्धा सद्धम्मधारिणो हुन्ति / किल उत्तमट्ठकप्पप्पसाहया निहयमोहराया // 39 // तो रायसोम ! संसयकलंकनिम्मुक्कदंसण सिवम्मि / परिमियखेत्ते जीवा अणाइसिद्धा कई मन्ति // 40 // अहवेसभवो होही कयावि किं सबभवजीवेहिं / अपुणागमसिद्धेहिं रहिओ सहिओ अमक्वेहिं // 41 // पसरमि व तो पसिणे बप्पइरायस्स निम्मला पत्ता / 13 // 22 // EC%ACCAS

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