Book Title: Jayanti Charitram
Author(s): Malayprabhsuri, Vijayakumudsuri
Publisher: Manivijay Ganivar Granthmala
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________________ ॐ पठनार्थ बयन्तीप्रकरणपतिः / 282 // द उवलक्खिओ गुरूहि ढड्डरसट्ठस्स वन्दणमहितो। एसो कोवि महप्पा अहिणवपडिवन्नधम्मो त्ति // 26 // आपुच्छिओ दृष्टिवाद गुरूहिं सोम ! कओ तुम्ह धम्मपडिबत्ती / तेण विणयेण बोतं ढड्डरसड्ढाउ एयाउ // 27 // साहहिं तओ कहियं एसो अजरक्खिओ भयवं! / जस्सागमणे राया नायरलोओवि सन्तुट्ठो // 28 // तत्तो गुरूण पणओ विन्नत्तिं कुणइ रक्खिओ गमनेसक्खं / इच्छामि दिद्विवायं पढिउमहं तुम्ह पयमूले // 29 // दिक्खापडिवत्तीए पढियवो सोम दिद्विवाउत्ति / भणिए न्तराले गुरूहिं जम्पइ दिजउ दिक्खावि मह सिग्धं // 30 // तत्तो वियन्नदिक्खो आइक्खइ रक्खिओ जहा भयवं / इह सयणजणो | निर्यापिता राया धणियं असमञ्जसं काही / / 31 / / देसन्तरम्मि गम्मउ सुत्थं सर्वपि होइ जह तत्थ। जुतंति तओ गुरूणो सिग्धं 8 भद्राचार्या देसन्तरं पत्ता / / 32 // एसा हु इत्थ तित्थे महल्लकल्लाणकारणा नचा / सिस्सस्स सुहगुरूहि पढमा निप्फेडिया विहिया गुरव आर्य॥ 32-2 // एक्कारस अंगाई कइवयपुवाई तत्थ पढिऊणं / अजवयराण मूले पढणत्थं जाइ गुरूभणिओ // 33 // एत्तो उज्जेणीए तत्थ य चिट्ठन्ति अजभद्दगुरू / आमासिओ य तेहिं वन्दन्तो रक्खिओऽसि ? ति // 34 // आमंति तेण भणिए गुरूहि उववुहिऊण अइबहुयं / केणद्वेणं ? सम्पइ पट्ठविओ कत्थ इय भणिओ // 35 // एसो विनवइ तो भयवं ! मृलम्मि अजवयराण / आइट्टम्हि गुरूहिं पढणत्थं दिट्ठिवायस्स // 36 // जुत्तमिणं किन्तु इहं, अम्हाणं उत्तमद्वकप्पमिमं / पडिवजिउकामाणं तुम्मे निजामगा होह // 37 // आएसुत्ति भणिचा विहिणा निजामिआ तओ तेहिं / भिन्नवसहीए तुमए पढियवं रक्खिओ भणिओ // 38 // गच्छइ कमेण पासे दसपुवधराण अजवयराण / रयणीए पुरवाहि वसिओ भिन्नाए वसहीए // 40 // पिच्छन्ति अजवयरा पभायसमयंमि सुमिणयमम्हं / पत्तम्मि पयं पीयं आएसेणं न SHEE

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