Book Title: Jayanti Charitram
Author(s): Malayprabhsuri, Vijayakumudsuri
Publisher: Manivijay Ganivar Granthmala
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________________ मी अपन्तीप्रकरणकृतिः / श्रीतोसलि| पुत्रगुरुवा खपदे एस दसपुरं पत्तो। तोसलिपुत्तगुलामविहारी // 62 // गुरूगच्छगयणमसयासे / सोच्चा निर 4 // 284 // | एयं पढिउं न सत्तोऽम्हि // 57 // विनत्तं तेण तओ भयवं ! सयणाण बोहणनिमित्तं / गच्छामि ताव पुणरवि पढिउमहं| | आगमिस्सामि // 58 // इइ विन्नत्ते तेणं उवउत्ता हुन्ति अजवयरावि / कहमेसो निविन्नो अज्झयणे बुद्धिरिद्धोवि // 59 // हुं नायं भवियत्वं दसपुवधरेण जं मए चेव / अपच्छिमेण जम्हा एयस्सवि नागमो होही // 60 // अजवयरेहिं तत्तो विसजिओ एस दसपुरं पत्तो / तोसलिपुत्तगुरूहि कमेण गणहरपए दुविओ // 61 // पडिबोहिऊण सम्म सयणजणं दिक्खिऊण सयलंपि / जाओ जुग्गप्पहाणो गणहारी उज्जयविहारी // 62 // गुरूगच्छगयणमंडलभूसणससिमंडलेण तेण इमं / जिणवयणं कुमुयवणं पयासियं पुइवीसरसीए // 63 / / अवरविदेहे सिरिसीमंधरसामिजिणवरसयासे / सोचा निगोयजीवे सक्को पुच्छेइ किं अहुणा / / 64 // भयवं भरहे चिट्ठा गणहारी कोइ कहइ कि ? सम्मं / एए निगोयजीवे केवलनाणीण विरहमि // 65 / / तो भयवया वि भणियं संति तहिं अञ्जरक्खियमुणिन्दा। जेसि निगोयकहणे सत्ती सुयनाणलद्धीए // 66 // तो कोउगेण इन्दो आगच्छइ ताण पायमूलम्मि / माहणरूवो पुच्छइ मह आउं कित्तियं अत्थि ? // 67 / / उवउत्तेहिं नाओ सुरराओ एस इसि हसिऊण | सको तुमंति भणिए हिट्ठो चलकुण्डलाहरणो // 68 // होऊणं वन्दित्ता निगोयजीवाण पसिणवागरणे / हिट्ठो कयपणामो जेसिं गुरूणं सुरिन्दोवि // 69 // अवरविदेहे सीमन्धरसामिजिणसरेण परिकहिए। तुम्हसरूवे भयवं! इहागओऽहंति कहिऊण // 70 // गन्तुमणो सुगुरूहि चिट्ठसु तं जाव साहुणो इन्ति / मं दट्टण नियाणं मुणिणो काहिन्ति तो जामि / / 71 / / जक्खगुहाए दारं अनंमुहं द्वाविऊण तो एसो। साहण पच्चयत्थं जहागयं पडिगओ सिग्ध // 72 // तेसि सिरिअञ्जरक्खियसूरीण गुणाण कन्दधवलाण / सबाण बनणे किं सत्ची छउमत्थजीवाण / / 73 / / गच्छम्मि स्थापित स्वजना दीक्षिताः निगोदकिचारः स्य कथितस्तेन / %AC % // 28 // श

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