Book Title: Jayanti Charitram
Author(s): Malayprabhsuri, Vijayakumudsuri
Publisher: Manivijay Ganivar Granthmala
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________________ // 291 // कम्माण लाघवेण लद्धे चउरंगए सम्मं // 41 // संजमलच्छीसंगमनिव्वुइसुहसंपयं लहेउणं / कयकिच्चेहिमणतं कालं जीवेहिं द्वायत्वं // 42 // सो धीरो सो वीरो दृढप्पहारि ? विभावउ सो उ / जो अंतरंगकम्मारिवग्गं सुग्गं दलइ सहसा // 43 // ता सोम तुमं संजमभरधारणधोरिओ हवसु जेण / उल्लंघियभवमग्गो लोयग्गपयडिओ होसि // 44 // चिरकालसश्चियाई खणेण दारूणि दहह जह अग्गी / अहवा रयणीतिमिरं हरइ जहा सूरकरपसरो // 45 // तह संजमोवि सुन्दर ! पालिजन्तो तिहा विसुद्धीए / निहणइ सवं सिग्धं अणन्तभवसञ्चियपावं // 46 // इय धम्मदेसणाए दिणमणिकिरणावलीसगोत्ताए / चारित्तमोहणीयं नवणीयं लहु विलीणं सो॥ 47 // उल्लसियरोमकूवो भवकूवा निग्गयं व अप्पाणं / मनन्तो पडिवजह चिन्तामणिचारूचारित्तं // 48 // तो गहियदुविहसिक्खो पइदिणवियसन्तसुदिढसंवेगो। एसो दढप्पहारी अभिग्गहं लेइ गुरूमूले // 49 // सुमरामि जाव भयवं पावमिमं गब्भपायपञ्जन्तं / ता चउबिहमाहारं न करिस्सं सन्तपरिणामो // 50 // उवसमलच्छि पत्तो काउस्सग्गेण संडिओ तत्तो। महुमहुणो इव बलवं निम्महणो भवसमुदस्स // 51 // लोओवि तयं दहूं दुस्सहदुबयणलोहकन्देहिं / तस्सवणजुगं विन्धइ अणवरयं हिययगामीहिं / / 52 // तह जद्विमुट्ठिलिट्टप्पहारसम्भारजजरियदेहो / सहइ उवसग्गवग्गं मेरूगिरिन्द व निकम्पो // 53 // दिढसंघयणो सहणो बावीसपरीसहाण दुस्सहाण / तण्हाछुहाइयाण सुहलेसो सोममुखी // 54 / जं तस्स नाणदंसणचारित्तरयणाणि मुटु दिप्पन्ति / दुग्गोवसग्गवग्गे तेण खमारयणगम्भत्ति // 55 // एवं निचलज्झाणो कमसो उल्लसियवीरियायारो / आरूढखवगसेढी सम्पत्तो केवलं नाणं // 56 // सच्चं दढप्पहारी मुणिसीहो जमिह कम्मसत्तूण / निम्मुलदलणदक्खो सिद्धिपुरीरजमणुपत्तो // 57 // इय बलियत्तं जेसि जीवाणं होइ कम्म चारित्रं गृहीत्वा शान्तभावेन परिषहाः सोढाः, | केवलज्ञान प्राप्य सिद्धः द्रढप्रहारी। ASSICALCREARSHA

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