Book Title: Jayanti Charitram
Author(s): Malayprabhsuri, Vijayakumudsuri
Publisher: Manivijay Ganivar Granthmala
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________________ // 293 // 4-OCESPECI5-15 मुनिवरं प्राप्य गृलहीता दीक्षा गीतार्थीभूय वैयावृत्त्यतत्परो जातः। मडहवच्छत्थलो // 5 // पत्तो कुमारभावे भणिओ सो माउलेण महगेहे / कम्माइं कुणसु मा भव आउलहियओ तुम वच्छ ! // 6 // जेण मह सत्ततणया वड्डन्तीओ कमेण चिट्ठन्ति / इच्छिस्सइ तारूने जा सा तुह वच्छ दायवा // 7 // आसापिसाइयाए गहियो सो कुणइ तयणु कम्माई / तत्तो माउलेणं जुबणसमयम्मि जिट्ठसुया // 8 // वुत्ता इच्छसि वच्छे ! किन्तु तुम नन्दिसेणवरमेयं / सा भणइ ताय नाहं एवं सुविणेवि इच्छामि // 9 // एयस्स देसं जइ पुण ताय ! तुम कहवि में अणिच्छन्ति / उन्बन्धणेण तोऽहं वावाहस्सामि अप्पाणं // 10 // तवयणं सोऊणं उविग्गो हवइ नन्दिसेणोवि / तो माउलेणं भणियं ज्वेयं कुणसु मा वच्छ ! // 11 // अवराणं पत्तेय छन्हं मज्झाओ पत्ततारूबा / इच्छिस्सइ जा सम्मं परिणाविस्सामि तं वच्छ ! // 12 // आसत्थो आसाए माउलगेहम्मि कुणइ सो कम्मं / चत्तो कमेण पत्ते तारूने ताहिं सबाहिं // 13 // किं मज्झ जीविएणं ? दोहग्गकलंकिएण पावेण / इय मरणज्झवसाओ बहिरूजाणम्मि सो पत्तो // 14 // तत्थ य मुणीण विन्दे मज्झगयं तारयाण चन्दं व / सोमं गणहरमेगं पिच्छइ धम्मोवएसपरं // 15 // तो लहुयकम्मयाए चिन्तइ सो नन्दिसेणवरविप्पो। वन्दामि मुणिवरिन्दं एवं तित्थंति काऊण / / 16 // गन्तूणं पयमूले वन्दइ आणन्दबहलपुलयंगो। उवलद्धधम्मलामो आसीणो सुद्धधरणीए // 17 // तत्तो गुरूहिं करुणारससायरमाणसेहिं सो भणिओ। उबिग्गो चिय दीससि सोम ! तुमं केण कजेण ? // 18 // विणयपणएणं तेणं गुरूण उद्वेगकारणे कहिए। धम्मोवएसदाणे चारित्तं गिन्हए एसो // 19 / / विणएण दुविहसिक्खं गिन्हन्तो तो कमेण संविग्गो / पत्तो गीयत्थपयं वेयावच्चम्मि ओज्जुत्तो // 20 // इन्दियदमेण दन्तो कोहाइकसायचाइओ सन्तो / तवचरणकरणनिरओ आलस्सपमायओ विरओ // 21 / / सो नन्दिसेणसाहू आयरियाईण CARE

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