Book Title: Jayanti Charitram
Author(s): Malayprabhsuri, Vijayakumudsuri
Publisher: Manivijay Ganivar Granthmala

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Page 308
________________ // 295 // CSCA-154CICIA देवेन क्षामितो | मुनिवरः, एतादृशि दक्षत्वं श्रेष्ठम् / सो नन्दिसेणसाहू मियमहुरं भणिउमाढत्तो // 39 // मुणिपुंगव धीर तुम सम्म पक्खालियम्मि अंगम्मि / पियसु जलं सीयमिण आसत्थो होसु सोम ! तुम // 40 // आगच्छसु पुरमझे तुरियं चिय मज्झखन्धमारूढो / विजोवइद्वपत्थोसहेहिं लहु लहसि आरोग्गं / / 41 // एवं महुरगिराए महुमहुराए भणिजमाणोवि / पक्खालियसवंगो जलपाणेणं विगयतण्हो // 42 // कडुयं चिय जम्पन्तो आरूढो तस्स खन्धदेसम्मि / अइसयदुस्सहगन्धं वारंवारं मुयइ असुई // 43 // कहमेस महाभागो सिग्धं आरूग्गभायणं होही। इय वच्छलपरिणामो चिन्तइ सो नन्दिसेणोवि // 44 // कहमेस मुणी लहिही ? लहुं समाहिं महोसहीजोगा। कोवो सजणचरिओ विगिच्छओ सत्थओ होही? // 45 // अच्छरियं तस्स दढं गिलाणदुबयणतवणकिरणेहिं / उवसमपीउसरसं सिन्दइ फलिहुजलं चित्तं // 46 // अह पुरवरअन्मासे ओहिनाणेण नन्दिसेणस्स / पिच्छइ सच्छं देवो माणसजलसच्छहं हिययं // 47 // तो पयडियनियरूबो देवो मणिमउडकुण्डलाहरणो। परितुट्ठमणो वन्दइ पयकमलं नन्दिसेणस्स // 48 // थुणइ य भत्तिभरेणं गुणमणिरोहणगिरिन्द ! मुणिराय / जयसि तुम जियसयलऽन्तरंगरिउवग्गमाहप्प / / 49 // अवि चलइ मेरूचूला समुद्दवेलावि चयइ मजायं / वेयावच्चपइन्ना तुह मुणिवर निचला सच्चं // 50 // साणन्देणिन्देणं तुज्झ पसंसा सुराण मज्झम्मि / जेण कया तेणाहं समागओ देवलोगाओ // 51 // अन्नाणन्धेण मए तुज्झ परिक्खानिमित्तमायरियं / जमिह तए खमियवं मुणिन्द ! महचिट्ठियं तं तु // 52 // ताविजन्तेवि बहुं कणगे अहियं हवेइ जह सुद्धी / तह तुहुवसग्गेवि हु अभिग्गहे निम्मला बुद्धी / / 53 // आयरियगिलाणाईसु वच्छल्ले सल्लइवणनिउछे / मुणिकुञ्जर तुज्झ रूई सहावओ निचला चेव / / 54 // दुग्गोवसग्गवग्गे खमावहे कायराण दुल्लंघे / उक्खित्तमार 4%A E%A5% S C4 295 //

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