Book Title: Jayanti Charitram
Author(s): Malayprabhsuri, Vijayakumudsuri
Publisher: Manivijay Ganivar Granthmala
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________________ *Y बयन्तीप्रकरणपतिः / // 286 // दिप्पन्ते / अइनिभोयणेणवि जह देहो दुबलो होइ // 90 // तह दज्झइ कम्मवणं जाणह चिरकालरूढमइगहणं / सिव- उजैनध्यानपुरपहरोहकरं दुहमरफलदाणदुल्ललियं / / 91 / / एएण पच्चएणं झाणं अरिहन्तपवयणे चेव / झायन्ति मुणिवरिन्दा सुरगिरि- स्वरूपनिच्चलमणा सम्मं // 92 // जइ पढमं धम्मझाणं सम्मं सगुणसरलया सहियं / तो सिज्झइ परलोओ सलद्धलक्खाण साहूण प्रकटनम्। // 93 // धम्मज्झाणघणेणं धणियं परितज्जणाहि लोहग्गी / उवसमइ तओ अन्ते जायइ सव्वत्थसिद्धीवि // 94 // अन्नं चधम्मज्झाणे घणमि पसरन्तनिम्मलदगम्मि / मुणिगणमणगयणयले स्यपडलं दूरमोसरइ // 95 // सिवपासायारोहणनेस्सेणी होइ जइ खवगसेणी / मोहपमाए खीणे मुणीन्दमाहप्पभावेण // 96 // उच्छलइ सुक्कज्झाणं चिरसंचियघायकम्मगिरिकुलिसं / तस्सायममेयदुगे तइए भेए असंकन्ते // 97 // एयारिसम्मि अरूणोदय व झाणन्तरम्मि वट्टन्ते / केवलनाणदि-| वायरमहोदओ होह साहणं // 98 // लणं केवलं नाणं सव्वन्नू सव्वदंसिणो। भवाणं दिन्ति सम्बोहं मिच्छामोहतमोपहं // 99 // सुहमकिरियानियट्टी तइयं झाणं निज्झाणमह सुकं / निजरणकए मुणिणो चउन्ह सेसाणकम्माणं // 10 // विच्छिन्नकिरियमप्पडिवायं झाणं चउत्थयं सुकं / झाइत्तु जन्ति सिद्धिं सेलेसीकरणओ झत्ति // 101 // इच्चाइ अजरक्खियगुरूवएसेण अमयलेसेण / दुब्बलियपुस्समित्तम्स सयणाणं समयइ मोहविसं // 102 // निम्मलदयम्मि जिणवत्रयणे माणससर व ते सयणा। सुविसुद्धपक्खवाया हुन्ति सया रायहंस व // 103 // दुबलियपुस्समित्तो मित्तो च्चिय अम्ह एस संजाओ। मिच्छत्तमोहतिमिरं जस्सागमओ गयं दूरे // 104 // धन्नो एस सपुनो लद्धा जेणजरक्खिया गुरूणो / जेहि भवअन्धकूवे निवडन्ता रक्खिया अम्हे // 105 / / एवं भावियचित्ता ते जाया सम्मदिट्ठिणो हिट्ठा / दुब्बलियपुस्समित्चस्स सज्झायझाणाण नाएण 1 // 286 //

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