Book Title: Jayanti Charitram
Author(s): Malayprabhsuri, Vijayakumudsuri
Publisher: Manivijay Ganivar Granthmala
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________________ 283 // श्रीवजखामिपाधै दृष्टिवाद पठताऽऽर्यरक्षितेन खभ्राता दीक्षितः। सवं तु // 41 // जागरिएहिं सुमिणे कहिए अन्नन्नफलवियारम्मि / साहूहि कए वयरा गुरूणो जम्पन्ति परमत्थं // 42 // पाडिच्छओ अवस्सं कोवि कुओ आगमिस्सइ पभाए / सो पढिस्सइ सुत्तं अचिरेणं नउ असेसंपि / / 43 // एवंति मुणिवरेहिं पडिस्सुयं सुत्तपोरसिसमए / निस्सीहिं कुणन्तो समागओ रक्खिओ तयणु // 44 // वन्दन्तो विहिपुवं आलविओ अजवयरसामीहिं / किं रक्खिओसि ? कत्तो केणत्थेणऽथ सम्पत्तो ? // 45 // आमंति भणेऊणं भणइ इमो दिदिवायगहणत्थं / तोसलिपुत्तगुरूहि आइट्ठो तुम्ह पासम्मि // 46 // अजवयरेहि भणिओ कहं हिओ नयरबाहिरवसहीए। इइ बोत्ते सो भणिओ पढियत्वं होइ किं एवं? // 47 // तेणुत्तं जे तुब्भे भणह तहा तंति किन्तु आइटुं / भिन्नवसहीए द्वाणं पुजेहिं भद्दगुत्तेहिं / / 48 // सुगुरूणं आएसे अवस्समिह कारणेण होयत्वं / उवउत्तेहिं तेहिं तत्तो जुत्तंति संलतं // 49 // तो आयरेण गिन्हइ विणयरओ दिडिवायसुयरयणं / पति सुप्पसन्ना तमज्झवयरावि वियरन्ति // 50 // अह पियरेहिं नायं सन्तुडेहिं तओ समाहुओ / पुरिसाइपेसणेणं आगच्छसु धम्मदाणत्थं // 51 // आगमगहणपसत्तो नावगच्छइ जाव रक्खिओ तत्तो / गन्तूण फग्गुरक्खियनामेणं बन्धुणा वुत्ते // 52 / / जइ तुम्भे आगच्छह दंसणउत्कंठियाण पियराण / पखजं पडिवाइ तो सयलो सयणवग्गोवि / / 53 // जइ एवं पडिवजसु दिक्खं तं चेव रक्खिएणुत्तो। रहसेण फग्गुरक्खियभाया गिन्हइ तओ दिक्खं // 54 // गहियाणि य पुवाइं नव, दसमद्धम्मि पढियमित्तंमि / परिकम्मगहणमग्गे खिन्नो सो जइवि मेहावी // 55 // पुच्छइ भयवं कित्तिय पढियत्वं मज्ज्ञ अजवि समत्थि / जम्पन्ति अजवयरा सरिसबमेरूवमाणेण // 56 // तो पढसु तुम अजवि चिट्ठइ सुयसायरो अपारोत्ति / मणिए गुरूहि चिन्तइ +GROCCOREOGRA% AX RECENE // 283 //

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