Book Title: Jayanti Charitram
Author(s): Malayprabhsuri, Vijayakumudsuri
Publisher: Manivijay Ganivar Granthmala
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________________ // 279 // मृत्वा / नरकंगतो कालः। IROECRECRUCHECECAX परलोए। सब त्रयणओ मे न दुग्गइदुक्खदन्दोली / / 78 // सवन्नुवयणसवणे हिययं सुयणेहिं होइ दायई / अप्पहिए जीवदयासहिए महिए सुरेहिपि // 79 // अनं च-अप्पहियं काय जइ सक्का परहियपि कायई / अप्पहियपरहियाण अप्पहियं चेव कायवं // 80 // एवं वियारिऊणं हवेण सुहडेहिं सेणियनिवेण / सोयरियकरग्गाओ हराविया महिमपंचसया // 81 // अइगहणगिरिनिकुंजे सिग्धं नेइऊण दूरकंतारे / सच्छन्दं चरमाणा मुक्का सुहडेहिं निववयणा // 82 / / सेरिहविरहहयासणतचो तओ य कालसोयरिओ। पेच्छइ विभंगनाणी रत्तच्छे गिरिनिकुञ्जम्मि // 83 // गच्छइ तत्थ तुरियं सहत्थसत्थेण ताण घायत्थं / ते हणिऊणं सत्थो जाओ खुद्दो महारम्भो // 84 // मरणंमि दाहपसमणमिउसीयसुगन्धदिश्ववत्थूहिं / कीरन्ते उवयारे अभिभूओ तिक्खदुक्खेहि // 85 // तत्तसिलाए खित्तो चेयह वत्थो व गिम्हकालंमि / रुद्दज्झाणोवगओ विलवह अइकरूणसदेण / / 86 // सुलसो विय तप्पुत्तो तस्स सरूवं कहेइ संभन्तो। अभयकुमारस्स तओ स बुद्धिमं चिंतए एवं / / 87 / / एसो खु जीवधायणरसेण संजायपावकम्मभरो। उप्पन्न विवज्जासो सत्तमनरयोल्लसियलेसो // 88 // इइ भाविऊण अभयो भणइ इमं सुलस एस तुज पिया। एयविवरिएण उवयारेणं सुहं लहहिह // 89 // अभयकुमारेणुत्तो ततो गतूण पिउसमिबंमि / पुत्तो सुलसो विविहे कारइ विवरियउवयारे // 90 // कण्टयसेज्जासंछियतणुस्स कालस्स विरससद्देहिं / असुइविलेवाहारे सुहन्ति भन्ती हवइ तस्स // 91 / / जाओ विडम्बणाए मरिउं सो परमकिन्हलेसिल्लो। अजहन्नुक्कोसडिई अपइट्ठाणम्मि नेरइओ // 92 // एवमहम्मायारा जयंति ! जे हुंति निग्षिणा जीवा / ते सुत्त च्चिय सेया जागरमाणा पुण अणजा // 93 // VIm279 //

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