Book Title: Jayanti Charitram
Author(s): Malayprabhsuri, Vijayakumudsuri
Publisher: Manivijay Ganivar Granthmala
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________________ // 277 // ** श्रेणिक रवरेणोक | कालो जीववधवर्जनार्थ *SHAHARAN है। अनहा काउं // 45 // किं बहुणा-सन्निहिए राहुंमि नरए घोरन्धयारपसरम्मि / सहसा कम्पियमणो राया कसिणच्छवी जाओ // 46 // पुच्छइ निको भयवं ! तुमम्मि कारूमपुत्रभत्तीए / आराहिएवि जिणवर ! नरए पडणं कहं मज्झ // 47 // देवाहिदेव तुमए तिहुयणपहुणा अणन्तवीरिएण | पयलग्गोवि पडन्तो नरए रक्खिजए न कहं ? // 48 // उवलद्धे सम्मत्ते दुइयाई तिरियनरयदाराई / एयम्मि तुम्ह वयणं न हवइ सहलं कहं ? नाह ! // 49 // भयपि भणइ नरवर ! अवस्सभवियत्वं हवा चेव / इत्थ पहुणोवि ससक्का नहु सका अन्नहा काउं // 50 // नरयाउयमि बद्धे आरंभाईहिं अइमहल्लेहिं / सम्मदंसणरयणं पच्छा तुमए पत्तं महाराय ! // 51 // कहमवि अदत्तफलयं कम्मं चारित्त-सम्पओगेवि / दुहजलहिपारगमयं न होइ निव! जाणवत्तं व // 52 // पच्छा सम्पत्तणवि पढमो उस्सिप्पिणीए तित्थयरो / तं राय ! पउमनाहो होहिसि सम्मत्तरयणेण // 53 // नरयभयमोहजोहक्कन्तमणो सिणिओ भणइ / नाह ! कहसु तुमं तमुवाय न लहेमि जओ नरयवायं // 54 // मृढहिययस्स सेणियनिवस्स संबोहणत्थमाह जिणो / महिसाणं पंचसए निहणन्तं कालसो. यरियं // 55 // एगदिवसंपि रक्खसि जह तं नरनाह दिवजोगेण / तोऽवस्सं नरयगई न होई तुह सोम! दुहहेऊ // 56 // इच्चाइ जिणवरेणं वोत्ते नमिऊण सेणियनरिन्दो | रायगिहं सम्पत्तो हक्कारइ कालसूयरियं / / 57 // भणिओ य नरिन्देणं 4 काल तुमं महिसघायणं मुयह / जं जीवदयावासा सिरीनिवासा समुह व // 58 // पइदिणं सेरिहघायणरसेण रूढाण नरय पुढवीए / पावतरूण फलाई दुहाई होहिन्ति विरसाइं // 59 / / पुवभवसंभवेणं केणवि पउरेण पावपंकेण / इहलोए तुह जायं पेच्छसु चंडालजाइत्वं // 60 // विणिवाइय जीवाणं विसिद्धवंसोन्भवाणवि जियाण / चावाणं नवि जायइ परलोयप्पसाहणे 277

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