Book Title: Jayanti Charitram
Author(s): Malayprabhsuri, Vijayakumudsuri
Publisher: Manivijay Ganivar Granthmala
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________________ बयन्तीप्रकरणइतिः / // 278 // सत्ती // 61 // पयडन्ते निवचन्दे जीवदयं कोमुयं व तप्पुरओ / पंकयवणं व कालो पावइ सवंगसंकोयं / / 62 // निद्विय- श्रेणिककृते दयंमि काले कासारे पावपंकपरिणामो। धणियं सेणियरना महिसाणं मोयणे जाओ // 63 // अह पश्चभूयसंजोगमित्त-|| प्रतिबोधोगमि चेयणा हवइ / मजंगमेलए जह मयसत्ती नन्नओ एइ // 64 // देहाइरित्तजीवे अविजमाणमि नरवर ! कहऽम्ह। पर- पायेऽपि लोए नरयदुहं कहिजमाणं भयं देउ // 65 // इइ किन्हलेस हरिएस, काल तमभवं जपसि / जीयाण सयं किं न बुज्झसि ? कालोन जममुत्तो चेयणो जीवो // 66 / / मूत्तजडभूयभूयस्सहावदेहा कहं हवइ एसो ? / कारणकजववस्था सुत्था नहु अन्नहा प्रतिबुद्धः। होइ / / 67 // इच्चाइ जुत्तिसिद्धे जीवे सोयरिय? देहवइरित्ते / निस्सन्देहं सिज्झइ परलोओ कम्मफलहेऊ // 68 // तो भन्नसि परलोए जीवाणं मारणम्मि मरणाई / पाविहिसि अणन्ताइ दुरन्तअज्झप्पपओगेण // 69 / / तो एवं ववसाएं | चइत्तु पसरन्तपावकम्मायं / कुणसु तुम जीवदयं कलियमलपक्खालणगंगुदयं / / 70 / / जीवदयसारणीए वाणीए सेणिएण सिमि / कालखितम्मि करूणारामो न कहिंवि पल्लविओ // 71 // भणियं च णेण पञ्चक्खमेव माणं न इत्थ जुत्तीओ। सुचीओ इव मुत्ता जं ताओ मुत्तियमईहिं / / 72 // तो सेणिएण भणिय पच्चक्खेणं न होइ पडि सेहो। जीवाइपयत्थाणं नूणमपञ्चक्खरूवाणं // 73 // उप्पन्नपि य गुमाणं पच्चक्खा तमिह काल ! विनेयं / जे होइ पुत्वं काल ! पमाणं पच्चरखसरिसंति // 74 // ज संवाइपरोक्खं तंपि पमाणं वयन्ति तो विबुहा / जं पुण तुमं न मनसि कारणमेयं तमिह नेयं / / 75 / / पावासत्ते सत्ते उवएसो कुणइ किन्नु धम्मरूई है। नीलीरत्ते वत्थे कुंकुमराओ कहं होउ ? // 76 // एवं च सेणिएण रना | हियये विणिच्छियं सम्मं / एसो कलूसो कालो नूणमभवो भवाणन्दी // 77 // परमज दिणे सेरियाऽभक्खणयाए ताव होइ IY // 278 // % ARSA

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