Book Title: Jayanti Charitram
Author(s): Malayprabhsuri, Vijayakumudsuri
Publisher: Manivijay Ganivar Granthmala

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Page 287
________________ भी जयन्तीप्रकरणवृत्तिः / // 274 // A4%AAAAAA% व्याख्या-प्राणिनां जागरिका ? किंवा जिन ! सुप्तत्वं साध्विति / ततः प्रभुः प्राह-जयन्ति ! धार्मणां जागरिका जागरिकाश्रेयसी, अधर्मिणां पुनः सुप्तत्वमिति / अधमिका हि प्राणीनां द्वित्रिचतुरिन्द्रियानां, जीवानां पंचेन्द्रियाना, भूतानां-तरूणां सुप्तत्वसत्वानां-शेषप्राणीना, दुःखशोचनपरितापनादिषु येन वर्तन्ते, ते नित्यं अधर्मकर्माणः अधर्मवृत्तयः अधर्माचाराः अधर्मे विषयकरज्यमानाः सुप्ताः-सुप्ताः संतः सत्वाः श्रेयांसा, कालसौकरिकादिवत् प्रश्नोत्तरे अस्थि इह तिरियलोए असंखदीवाणमाइमो दीवो / जम्बूदीवो तंमि य दक्षिणभरहद्धमज्झम्मि // 1 // कालमगहदेसे नयरं रायगिहं सुरपुरं व रमणीयं / रमणीयणमणिकंकणकिरणभरूल्लसियसुरचावं // 2 // पडिकूलजलहिमहणे सौकरिकोमयविक्कममंदिरेण सुसिरीओ। तत्थ य सेणियराया हरिव्व विबुहाण दिनसुहो // 3 // पंचसयसेरिहाणं पइदिवसं सत्त. दाहरणम् / घायणे रसिओ / मरुमडण्ल व निद्दयभावो तह कालसोयरिओ॥४॥ निच्चमहमस्सायारो अवरावरजीवपुग्गलाहारो / उल्लसियकिन्हलेसो रूद्दज्झाणाणुगो एसो // 5 // पावट्ठाणरूवं दुहिक्कफलयं दुरन्तपरिणामं / आरम्भरसेणेसो सिञ्चइ संसारवणं गहणं / / 6 // एसो अणाइमिच्छादिट्ठी अहिलसियविसयजम्बालो / परिहरियसुइचरित्तो भवगड्डासूयरो जेण // 7 // अह | कोसंबिपुरीए तस्सन्तेउरिबलम्मि कहियमि / रंजियमणो नरिन्दो सयाणिओ सेड्यादयस्स // 8 // कन्नुस्सारं वियरइ पइदिवस भोयणमि दीणारं / तल्लाहलोहबहुविहभोयणवमणेण पुण कोढो // 9 // तस्सुप्पन्नो कन्नुस्सारो रना सुयाण तो दिन्नो / निन्दिजंतो चिट्ठइ सो घरदारे तिणकुडीरे // 10 // कुद्धो विरुद्धबुद्धी रुद्दज्झाणेण चिन्तए एवं / अविणियकुडम्ब मे धिप्पइ एएण रोगेण // 11 // मम समीवे वच्छा ! पसुमेगं आणिऊण बन्धेह / पजन्तजन्नजुग्गं मन्तपवित्तं जमिह En 274 // NAGAR

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