Book Title: Jayanti Charitram
Author(s): Malayprabhsuri, Vijayakumudsuri
Publisher: Manivijay Ganivar Granthmala
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________________ // 273 // | जैनदीक्षास्वीकारेण | तस्य वैमानिकदेवत्वप्राप्तिः। पसरह पुनिमजुण्हा सहोयरा पुनवित्तस्स // 42 // तीए विहियइ कुमुयाकरो व समयाणुसारिदिद्वन्तो / पडिहयमोहवियारो दुरूसियऽपरिमलुग्गारो // 43 // तहाहि-आसंसारं सरियासहस्सहीरन्तरेणुनिवहेण / पुहवी न निट्ठिय चिय उयहीवि थलीमऽसंजाओ / / 44 // जह तह सिद्धिखित्ते अणाइसिद्धे हि णन्तजीवहिं / भरिएवि मंति णन्ता सिज्झिस्सन्तो न निट्ठति // 45 // एवं संभरिवइणा वुत्ते पडिउत्तरमि जुमि / सूरीवि बप्पहट्टी गुणणिहट्टी भणइ हिट्ठो // 46 // धनोसि तुम सुन्दर ! राओ चिय विहियसिवपइट्ठो। पडिपुत्रकलामंडलवित्तो ज तं महच्छरियं // 47 // तं होसु सुयण ! सम्पइ दियराओ तारयाण मज्झमि / गुरूसंनिहाणजिणवरदिक्खागहणे पवनमि // 48 // भणिऊणेवं वियरइ विहिणा सिरिचप्पहट्टिसरिवरो / जिणसासणंमि दिक्खं गिन्हइ सो सुद्धसद्धाए / 49 / पडिवनं पुवं चिय सन्नासं उत्तमट्ठकप्पेण / उद्धरियसवसल्लो आसहइ मोहपडिमल्लो // 50 // अह तं सग्गसिरीए कडक्खनिक्खेक्गोयरं नाउं / सद्दहणसिन्धुपूरणमेहं गाहं भणइ सूरी // 51 // तई सम्गमए सामन्नसीह अवरत्तओ न फिट्टीहिही / पढम चिय वरियपुरंदराए सग्गस्स लच्छीए // 52 // एवं सुहासिहेहि सयंभरीसो विसुद्धपरिणामो / चहऊण पूइदेहं वेमाणियसुरवरो जाओ॥ 53 // अस्मिन्नपि संशयान्धकारे त्रिभुवनभास्करेण भगवता कृतापहारे विकस्वरमुखारविन्दा जयंती सानन्दा पुनः प्रश्नयामास // तद्यथाजागरिया सुसतं किं साहु? जिण जयन्ति !जागरिया। धम्मीणमहम्मीणं सुत्तत्तं साहु निहि // 17 // पाणाणं भूयाणं सत्ताण तह जयंति ! जीवाणं / दुक्खणसोयणपरियावणाईसुं जेण वहति // 18 // निचं अहम्मकम्मा अहम्मवित्ती अहम्मआयारा। अहमम्मि रजमाणा सत्ता सुत्ता उ ते सेया // 19 // // 273 //

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