Book Title: Jayanti Charitram
Author(s): Malayprabhsuri, Vijayakumudsuri
Publisher: Manivijay Ganivar Granthmala
View full book text
________________ // 265 // AA%EC अष्टादशपापस्थानकफलनिरूपणम् / सम्मि। तित्तीससागराऊ उप्पनो नारयतेण // 103 // सुगुरुसमक्खं संजमलञ्छि निवाहिऊण परितुह्यो / सुकयत्थं ममन्तो अप्पाणं पुण्डरीयरिसी // 104 / / जियकोहमाणमाओ गुरूण सिक्खागहमि अपमाओ / निज्जियलोहपिसाओ गीयत्थो सो लहुं जाओ // 105 // अह सुकुमारसुहोचियदेशे छट्ठमाइतवच्चरणो। अणुचियलुक्खाहारो समूलरोगाउरो होइ // 106 // मेरूगिरिधीरचित्तो तत्वो सो पुण्डरीयरायरिसी / अप्पेणवि कालेणं आराहियसुद्धसामन्नो // 107 // सुपसनो अविसनो धम्मज्झाणम्मि लीयमाणमणो / तित्तीससागराऊ सबढे सुरवरो जाओ // 108 // // कण्डरीककहाणकं सम्मत्तम् / / एएहिं अट्ठारसपावट्ठाणेहि कम्मपयडीओ। बन्धन्ति सिढिलबन्धा धणियं सुदिढेण बन्धेण // 1 // अप्पप्पएसा पुण बहुप्पएसनिचयाउ सञ्चन्ति / मन्दणुभावा तिवाणुभावा वन्धेण अञ्जन्ति // 2 // लहुकालठियाओ बहुकालद्विइत्तणेण ट्ठाविन्ति / जीवा जयन्ति ? ततो अहकम्मलेवो गुरू होति // 3 // पावलेवलिया दुहजलभरिया भवन्धकूवम्मि / बुडन्ति अहो उड्डगमणसहावावि तुम्ब व // 4 // एयाए पण्हुत्तरवाणीए जिणवरस्स वीरस्स / वणवल्लीव जयन्ती पल्लविया अमियबुद्धीए // 5 / / अह तिक्खदुक्खवेयणजलेण संभिन्नकम्ममललेवा / उबलद्धलहुयभावा उडे उड्डे जिया हुन्ति // 6 // जुगसमिलानाएणं सुखेत्तसुङ्कलाइसंगयं पप्प / संसारम्मि समुद्दे मणुयत्तं जाणवत्तं व // 7 // तं चारित्तवसेणं खमाइगुणरयणरासिपडिपुग्नं / संवरियासवदारं पयट्टसमग्गसञ्चारं // 8 // दूरीकवसंमोहा गुरूहि निजामएहिं संविग्गा / आरूडा सिद्धिपुरि जयन्ति ! लहु मा जन्ति भवजिया // 9 // एवं सिरिवीरजिणे तिजयदिणेसंमि भासमाणमि / वियसंती भमरझुणी नलिणीव पइम्पइ CAHARASHARॐ %95 265 // 23

Page Navigation
1 ... 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338