Book Title: Jayanti Charitram
Author(s): Malayprabhsuri, Vijayakumudsuri
Publisher: Manivijay Ganivar Granthmala

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Page 280
________________ अभव्यत्वे रुद्रदेवाचार्यदृष्टान्तकथा। // 267 ॥ढ़ा एस मुणिवसहा // 13 // ता लहु तणुचिन्ताए सूरी रयणिभरंमि थंडिल्ले / गंतुमणो संथारा बाहिं द्ववियंमि पायंमि // 14 // चंपाणेसु अंगालएसु कसरक्कएसु जाएसु / हरिसियहियओ जम्पइ अरिहन्तेहिं इमे जीवा // 15 // निदिवा वयणमिणं निक्करूणं तस्स साहूणो सवे / सोऊण मुणिन्तेवं एस अभवो असंमत्तो // 16 // अचरित्ती परिचत्तो पभायसमयंमि सबसाहहिं / अंगारमहउत्ति य सिद्धो जिणसासणे एसो // 17 // तस्स य सीसा मुणिणो सम्मं सुगुरूण सनिहाणमि / आरोहियचारित्ता उत्तमसुरसम्पयं पत्ता // 18 // भुत्तूणं दिवसुहं तओ चूया अन्नअन्नदेसेसु / रायसुया ते जाया ससिरीया सुरकुमार व // 19 // खियपयडियनयरे जियसत्तुनिवेण समाहूया। सबिड्डीए धूयाए सयंवरामण्डवे पत्ता // 20 // सोहम्मसहारम्मे तत्थ य रयणासणेसु आसीणा / चित्तलिहिय व गीय रमणीयं जाब निमुणन्ति / / 21 // तावय सो पुवभवे दिक्खागुरू रूद्ददत्तआयरिओ। संसारंमि भमन्तो करहत्तेणं समुप्पन्नो // 22 // भारकन्तो दुब्बलगत्तो सवंगपामरो दीणो / ताणतेणं गच्छइ रडमाणो कडयसद्देण // 23 // गीयज्युणिरंगभंगे तयहुत्तं तेहि दिट्ठिनिक्खेवे। पुवमवब्भासेणं जाइस्सरणेण विनायं // 24 // एसो अम्हाण गुरू भवगत्तास्परो अभवो त्ति / परिचत्तो पुत्वभवे एवं हिण्डइ कुजोणीसु // 25 // उवयारिणं एयारिसाण अम्हेहिं वच्छलेहिंपि / पच्चुवयारो किजह कयन्नएहिं पि कह ? हीही // 26 // संविग्गा विसयमुह विसं व मन्नन्ति विरसपरिणाम / ते सिद्धिपुरन्धीए संगमसुहलालसा हुंति // 27 // तं करहं बहुमारकन्तं मोयाविऊण दवेण / सच्छन्दं वियरन्तं अरनमज्झम्मि मुश्चन्ति / / 28 // सुगुरूण सनिहाणे सयं पवजन्ति सबविरइसिरिं / विणयगुणमायरन्ता थेरन्ते सुयमहिन्जन्ति // 29 // अहिगयसुत्तस्थाणं गीयत्थत्तं हवेइ अह ताणं / तत्तो धम्मज्झाणं झायन्ताणं समुल्लसियं // 30 // ACHARGEORG 267 //

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