Book Title: Jayanti Charitram
Author(s): Malayprabhsuri, Vijayakumudsuri
Publisher: Manivijay Ganivar Granthmala
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________________ // 257 // हरइ तेण नयरीजणेण विनायतत्तेण // 3 // निवासिओ दुरप्पा गच्छइ देसन्तरं मिलइ तत्थ / विविहविडाणं जम्हा सरिसा सरिसेहि रजंति // 4 // उक्तंच-मृगा मृगैः संगमनुव्रजन्ति गावश्च गोभिः तुरगास्तुरंगैः / मूर्खाश्च मूखैः सुधियः सुधीभिः तपस्विनः समानशीलव्यसनेषु सख्यम् // 1 // इहलोयपडिबद्धा गिद्धा भोएसु तेण ते भणिया / होमि अहं परिवायगमुणी तवस्सी मायामृषातओ तुम्हे // 4 // कुणह पसिद्धिं लोए एस मुणिन्दो महातवस्सी य / नाणी जाणइ सवं मासक्खमणेण पारेह // 5 // तवयणे वादे पडिबन्ने गामत्यमज्झभायमह वासी। चिट्ठइ रुक्खकिसंगो परिवायगवेसदंभेण / / 6 / / उक्तंच-निमीलयन्ति नयने शोषयन्ति | प्रकटिते तनुव्रतैः / दम्भारम्भेण वर्तन्ते लाभपूजायशोर्थिनः // 7 // लोयग्गे ते वि विडा तस्स पसंसं कुणन्ति एस मुणी / जंगम- ताडनतित्थं मासक्खवणेणं चैव पारेइ / / 8 // आउट्टो तो लोओ ठगतवस्सिस्स तस्स भत्तीए / परमायरेण पूर्व महारिहं कुणह तर्जनादि अणुदिवसं // 9 // विनवइ जणो अम्हं गिहाई तुह पायपउमपूयाई / हुन्ति मुणिराय ! किजउ तत्थागमणेण सुपसाओ // 10 // आहूओ सो तेसिं गिहागओ विहियविविहसम्माणो / धम्मत्थियलोएणं दंसियनियविविहसम्भावो // 11 // तेसि विडाण प्राप्ति पुरओ कहा जणाणं गिहेसु गिहसारं / अवदारं दारं वा भंडारं संधिकट्ठारं // 12 // रयणीए तेहिं समं खत्तपयाणेण मुसइ सबस्सं / एवं वच्चइ कालो मायामोसेण दोसेण // 13 // मायामोसे पावट्ठाणे सेसाणि पावट्ठाणाणि / जायंति जह अजिन्ने जियाण रोगा समग्गावि // 14 // एगमि दिणे खत्ते पत्ते एगमि ताण चोरंमि / तजिन्तेणं तेणं निवेइए वइयरे तम्मि // 15 // से तवस्सी निग्गहिओ सहेव सोहि तेहिं चोरेहिं / निन्दिजन्तो तजणताडणपमुहाई दुक्खाई // 16 // अणुभविऊणं सुइरं रूद्दज्झाणेण दुग्गई पत्तो / कूडतवस्सी मायामोसेणं पावट्ठाणेणं // 17 // इहलोयकडा कम्मा उग्गा D257 //

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