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श्री जैनव्रत-कथासंग्रह
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क्षयोपशनके अनुसार समझ से है, स्यापि (गणेश जोकि मुनियोंकी सभा श्रेष्ठ चार ज्ञानके धारी होते हैं) उक्त वाणीको द्वादशांगरूप कथनकर भव्य जीवोंको भेदभाव रहित समझाते है सो उस समय श्री महावीरस्वामीके समवशरणमें उपस्थित गणनायक श्री गौतमस्वामीने प्रभुकी वाणीको सुनकर सभाजनोंको सात तत्त्व, नव पदार्थ, पंचास्तिकाय इत्यादिका स्वरूप समझाकर रत्नत्रय (सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र रूप मोक्षमार्ग) का कथन किया और सागार (गृहस्थ ) तथा अनगार (साधु) धर्मका उपदेश दिया, जिसे सुनकर निकट भव्य (जिनकी संसारस्थिति थोडी रह गई है अर्थात् मोक्ष होना निकट रह गया है) जीवोंने यथाशक्ति मुनि अथवा श्रावकके व्रत धारण किये तथा जो शक्तिहीन जीव थे और जिनको दर्शनमोहका उपशम व क्षय हुआ था सो उन्होंने सम्यक्त्व ही ग्रहण किया । इस प्रकार जब वे भगवान धर्मका स्वरूप कथन कर चुके, तब उस सभा में उपस्थित परम श्रद्धालु भक्त श्रेणिकने विनययुक्त नम्रीभूत हो श्री गौतमस्वामी गणधरसे प्रश्न किया कि "हे प्रभु!* व्रतकी विधि किस प्रकार है और इस व्रतको किसने पालन किया तथा क्या फल पाया ?" सो कृपाकर कहो ताकि हीन शक्ति धारी जीव भी यथाशक्ति अपना कल्याण कर सके और जिनधर्मकी प्रभावना होवे ।
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यह सुनकर श्री गौतमस्वामी बोले-राजा! तुम्हारा यह प्रश्न समयोचित और उत्तम है, इसलिये ध्यान लगाकर सुनो। इस व्रतकी कथा व विधि इस प्रकार है- ( इति पीठिका)
* यहां शून्य स्थानमें जो कथा यांचना होवे उसीका नाम उच्चारण करना चाहिये ।