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श्री मेघमाला व्रत कथा ********************************
अब तुम सत्यार्थ देष अहंत, गुरु निग्रंथ और दयामयी धर्ममें श्रद्धान करो और श्रद्धापूर्वक मेघमाला प्रतका पालन करो तो सब प्रकार इस लोक और परलोक संबंधी सुखोंको प्राप्त होवेंगे।
यह यत भादों सुदी प्रतिपदासे लेकर आधिन सुदी प्रतिपदा तक प्रति वर्ष एक एक मास करके पांच वर्ष तक किया जाता है अर्थात् भादों सुदी पडिमासे आसोज सुदी पडिमा तक (एक मास) श्री जिनालयके आंगण, (चौक में) सिंहासनादि स्थापन करे और उस पर श्री जिनबिय स्थापन. करके महाभिषेक और पुजन नित्य प्रति करे, वेत वस्त्र पहिने, क्षेत ही चंदोया बंधाये मेघ धाराके समान १००८ कलशोंसे महाभिषेक करके पश्चात् पूजा करे।
पांच परमेष्ठिका १०८ पार जाप करे पक्षात् संगीतपूर्वक जागरण भजन इत्यादि करे। भूमिशयन व ब्रह्मचर्य व्रत पालन करे| यथाशक्ति चारी प्रकार दान देये, हिंसादि पांच पापोंका त्याग करे तथा एक मास पर्यन्त ब्रह्मचर्यपूर्वक एक भुक्त उपवास, वेला तेला आदि शक्ति प्रमाण करे। निरन्तर षट्रसी व्रत पाले अर्थात् नित्य एक रस छोडकर भोजन करे।
इस प्रकार जब पांच वर्ष पूर्ण हो जावें सब शक्ति प्रमाण भाव सहित उद्यापन करे अर्थात् पांच जिनबिंबोंकी प्रतिष्ठा कराये पांघ महान ग्रंथ लिखावे, पांच प्रकार पकयान बनाकर श्रायकोंके पांच घर देवे। पांच पांच घण्टा, झालर, चंदोवा, चमर, छन्त्र, अछार आदि उपकरण देवे। पांच श्रावकों (विद्यार्थियों) को भोजन करावे, सरस्वतीभवन बनाये, पाठशाला चलाये इत्यादि और अनेकों प्रभावना बढाने वाले कार्य करे।