________________
श्री जैनात-कथासंग्रह ********************************
इस प्रकार प्रतकी विधि सुनकर सेठ सेठानी श्रद्धापूर्वक इस व्रतको पालन किया, सो प्रतके प्रभावसे उनका सब दारिद्रय दूर हो गया और ये स्त्री-पुरुष सुखसे काल व्यतीत करते हुए आयुके अंतमें सन्यासपूर्वक मरण कर दूसरे स्वर्गमें देव हुए।
फिर वहांसे चयकर वे पोदनपुरमें विजयभद्र नामके राजा और विजयायती नामकी रानी हुई, सो पूर्ण पुण्यके प्रभावसे धन, धान्य, पुत्र, पौत्रादि सम्पत्तिके अधिकारी हुए।
आयुके अंतिम भाग (वृद्धावस्था) में दोनों राजा और रानी अपने पुत्रको राज्यका अधिकार देकर आए जिने भी दी। ले तप करने लगे सी तपके प्रभावसे आयु पूर्णकर राजा तो सर्वार्थसिद्धि विमानमें अहमिन्द्र हुआ और रानी भी स्त्रीलिंग छेदकर सोलहवें स्थर्गमें महद्धिक देव हुई। वहांसे चयकर ये दोनों प्राणी मोक्ष पद प्राप्त करेंगे।
इस प्रकार मेधमाला प्रतके प्रभावसे देवदत्त और देवदत्ता नामके कृपण सेठ और सेठानी भी मोक्ष पद पायेंगे सो यदि
और नरनारी श्रद्धासहित यह प्रत पालें तो अवश्य उत्तम फल पावेंगे।
मेघमाला व्रत धारकर, सेठ सेठानी सार। लहो स्वर्ग अरु लहेंगे, मोक्ष सुख अधिकार ।।