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श्री लब्धिविधान व्रत कथा
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निदान वे तीनों मुनिको उपसर्ग करनेके कारण गलित कोढ़को प्राप्त हुई, रूप, कला, सौन्दर्य सब नष्ट हो गया, और आयुके अंतमें मरकर पांचवें नरक गई। बहुत काल तक वहांसे दुःख भोगकर रज्जैनीके पास ग्रामपलास नामके एक गृहस्थकी पुत्रियां हुई हैं, सो छोटी अवस्थामें माता पिता मर गये।
पूर्व पापके कारण ये तीनों प्रथम कुरुपां कानी. कुबडी, कोढ़ी और तिसपर भी मूंड वचन बोलनेवाली है, इसलिये ग्रामसे बाहर निकाल दी गई है। वहांसे भटकती हुई यहां आई हैं और तू अपनी पट्टरानीके वियोगसे दु:खित होकर मरा, सो हाथी हुआ. तब श्री मुनिराजके उपदेशसे सम्यक्त्य सहित पंचाणुग्रत पालन करके मरा, सो स्वर्गमें देव हुआ। और देय पर्यायसे आकर यहां महीचंद्र नामका राजा हुआ है। सो इनका तेरा पूर्वजन्मोंका संबंध होनेसे तुझे यह मोह हुआ है।
तब राजाने कहा-महाराज! क्या कोई उपाय ऐसा है कि जिससे ये कन्यायें पापोंसे छूटे? ।
__ तब श्री गुरुने कहा-राजन! सुनो, यदि वे श्रद्धापूर्वक लब्धिविधान प्रत करें तो सहज ही इस पापर्स छूटकारा पायेंगी। इस व्रतकी विधि इस प्रकार है
भादो, माध और चैत्र सुदी एकमसे तीज तक यह व्रत एक वर्षमें ऐसे ५ वर्ष तक करें। पश्चात् उद्यापन करें अथवा दुगुना प्रत करे। व्रतके दिनोंमें या तो तेला करे या एकांतर उपयास करे या एकासना ही नित्य करें। और श्री महावीर स्यामीकी प्रतिमाका पंचामृताभिषेकपूर्वक पूजनार्धन करें।
तीनों काल सामायिक करें- ॐ ह्रीं महावीरस्थामीने नमः' यह १०८ जाप करें। जागरण और भजन करें।