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श्री जैनव्रत-कथासंग्रह ********************************
(२२ श्री द्वादशी व्रत कथा नमों शारदा यद कमल, स्याद्वाद भय सार।
जो प्रसाद द्वादशी कथा, कहूँ भव्य हितकार।। मालया प्रदेशमें पधावतीपुर नगर था। जहां नरब्रह्मा राजा अपनी विजयायती रानी सहित राज्य करता था। इस राजाको एक कुबडी कन्या उत्पन्न हुई, जिसका नाम शीलावती पड़ा।
एक दिन शिलायतीको रोती हुई देखकर राजा रानीको अत्यन्त दुःख हुआ व अनेक प्रकारकी चिन्ता करने लगे। फिर. किसी दिन. भाशोदासे जाम में प्रमोशन नामक मुनिराज विहार करते हुए आये। यह सुनकर राजा अति प्रसन्न हो नगरके लोगों सहित पन्दनाको गया। और स्तुति वंदनाके अनन्सर धर्मोपदेश श्रवण किया। ___पश्चात् अयसर पाकर राजाने पूछा-प्रभु! मेरी पुत्री शीलायतींको कौन पापके उदयसे यह दु:ख प्राप्त हुआ है? तब श्री गुरुने अवधिज्ञानसे विचार कर कहा-ए राजा! सुनो, अवन्ती देशमें आउलपुर नगर है, वहां राजपुरोहित देहुशर्मा और उसकी कालमुरी नामकी कन्या थी।
एक दिन यह कन्या सखियों सहित वनक्रीडा निमित्त उपवनमें गई और वहां आमके पृक्षके नीचे परम दिगम्बर ऋषिराजको कायोत्सर्ग ध्यान धारते हुए देखा। सो अपने रूपादिक मदसे मदोन्मत्त उस कन्याने मुनिको बहुत निन्दा की। कुत्सित शब्द भी कहने लगी कि यह नंगा, ढोंगी और अत्यन्त कामासक्त व्यभिचारी है। मह स्त्रियोंको अपना गुप्त