________________
११२
श्री जैनव्रत-कथासंग्रह ********************************
और तीन गुणग्रत और चार शिक्षायत भी ग्रहण किये। इस प्रकार सम्यक्त सहित बारह व्रत लिये। पश्चात् कहने लगा
हे नाथ! मेरी दरिद्रता किस प्रकारसे मिट तो कृपा करके कहिये।
तब भगवानने उसे अनन्त चौदसका प्रत करनेको कहा। इस व्रतकी विधि इस प्रकार है कि भादों सुदी ११ का उपवास कर १२ और १३ को एकाशन करे। पश्चात् एकाशनसे मौन सहित स्यादरहित प्रासुक भोजन करे, सात प्रकार गृहस्थोंके अन्तराय पाले, पश्चात् चतुर्दशीके दिन उपवास करे। तथा चारों दिन ब्रह्मचर्य हो, भूमि पर शयन करे व्यापार आदि गृहारंभ न करे। मोहादि रागद्वेष तथा क्रोध, मान, माया, लोभ हास्यादिक कषायों को छोडे, सोना, चांदी या रेशम सूत आदिका अनन्त बनाकर, इसमें प्रत्येक गांठपर १४ गुणोंका चिन्तयन करके १४ गांठ लगाना।
प्रथम गांठपर ऋषभनाथ भगवानसे अनन्तनाथ भगवान तक १४ तीर्थंकरोंके नाम उच्चारण करे।
दूसरी गांठ पर सिद्धपरमेष्ठिके १४ गुण चिन्तवन करे। तीसरी पर १४ मुनि जो मतिश्रुप्त अवधिज्ञान युक्त हो गये हैं उनके नाम उच्चारण करे। ___योथी पर केयली भगवानके १४ अतिशय केवलझान कृत स्मरण करे। पांचवीं पर जिनवाणीमें जो १४ पूर्वह उनका चिन्तयन करे।
छठयों पर चौदह गुणस्थानोका विचार करे। सालदी पर चौदह मार्गणाओंका स्वरूप विचारें।