________________
श्री औषधिदान व्रत कथा
******
२८ श्री औषधिदान कथा
जन्म जरा अरु मरणके रोग रहित जिन देव । औषfears aणी कथा कहूं करूं तिन सेव ॥ सोरठ देशमें द्वारिका नगर है। वहां नवमें नारायण श्री कृष्णचंद्र राज्य करते थे। इनके सत्यभामा तथा रूक्मणी आदि सोलह हजार रानियां थी, जो परस्पर बहिन भावसे (प्रेमपूर्वक ) रहती थी।
****
[ १३३
****
श्री कृष्ण प्रजा पालन और नीति न्यायादि कार्योंमें सम्पन्न थे। एक दिन ये श्री कृष्णजी स्वजनों सहित श्री नेमिनाथ प्रभुकी वन्दनाको जा रहे थे कि मार्गमें एक मुनि अत्यंत क्षीणशरिरी ध्यानस्थ देखे तो करूणा और भक्तिसे चित्त आर्द्रत हो गया और अपने साथवाले वैद्यसे कहाकि तुम रोगका निदान करके उत्तम प्रासुक औषधि तैयार करो जो कि मुनिराजको आहारके साथ दी जाय, जिससे रोग मिटकर रत्नत्रयकी वृद्धि हो ।
वैद्यने राजाकी आज्ञा प्रमाण औषधि तैयार की और जब श्री मुनिराज चर्याको निकलें तो कृष्णरायने विधिपूर्वक पडगाहकर नवधा भक्ति सहित श्री मुनिराजको भोजनके साथ औषधियुक्त तैयार किये हुए लाडूका आहार दिया, जिससे कृष्णरायके घर पंचाश्चर्य हुए और औषधिका निमित्त पाकर मुनिराजका रोग भी उपशम हुआ ।
श्री कृष्णजी औषधिदानके प्रभावसे (वात्सल्य भावके कारण ) तीर्थंकर प्रकृतिका बन्ध किया। किसी एक दिन श्री कृष्णराय पुनः मुनि दर्शनको गये सो भाग्यवशात् वे ही मुनि एक शिलापर ध्यानस्थ दिखायी दिये ।