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श्री जैनत-कथासंग्रह ******************************** __लालजी! तुम हंसिया भूल आये हो, सो जल्दी जाकर ले आओ पीछे भोजन करना, अन्यथा हसिया कोई ले जायेगा तो सब काम अटक जायेगा। विना द्रव्य नया दांतडा कैसे आयेगा? यह सुनकर गुणधर तुरंत ही पुन: बनमें गया सो देखा कि हंसिया पर बडा भारी सांप लिपट रहा है।
यह देखकर बहुत दुःखी हुये कि दांतडा बिना लिये तो भोजन नहीं मिलेगा। और दांतखा मिलना कठिन हो गया है तब वे विनीत भावसे सर्वज्ञ वीतराग नगी स्तुति करणे तसे प्रतितो स्तुति करने के कारण धरणेन्द्रका आसन हिला, उसने समझा कि अमुक स्थानोंमें पार्श्वनाथ जिनेन्द्र के भक्तको कष्ट हो रहा है।
तब करुणा करके पद्मावतीदेवीको आज्ञा की कि तुम जाकर प्रभुभक्त गुणधरका दुःख निवारण करो। यह सुनकर पद्मावतीदेवी तुरंत वहां पहुंची, और गुणधरसे बोली
हे पुत्र! तुम भय मत करो। यह सोनेका दांतडा और रत्नका हार तथा रस्नमई पार्शनाथ प्रभुका बिंब भी ले जाओ, सो भक्तिभावसे पूजा करना इससे तुम्हारा दुःख शोक दूर होगा। ___गुणधर, देवी द्वारा प्रदत द्रव्य और जिनबिंब लेकर घर आये सो प्रथम तो उनके भाई यह देखकर सरे, कि कहीं यह चुराकर तो नहीं लाया है, क्योंकि ऐसा कौनसा पाप है जो भूखा नहीं करता है, परंतु पीछे गुणधरके मुखसे सब वृतांत सुनकर बहुत प्रसन्न हुए और भूरि भूरि प्रशंसा करने लगे।
इस प्रकार दिनों दिन उनका कष्ट दूर होने लगा और थोडे ही दिनोंमें ये बहुत धनी हो गये। पश्चात् उन्होंने एक बड़ा मंदिर बनवाया, प्रतिष्ठा कराई, चतुर्विध संघको चारों प्रकारका यथायोग्य दान दिया और बडी प्रभाषना की। .