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श्री जिनराधी व्रत कथा ********************************
इस बातको सिवाय प्रभुके और सभाजन कोई भी न जान सके, परंतु प्रभु तो तीन ज्ञानसयुक्त थे, सो तुरंत ही उन्होंने जान लिया।
आप संसारमा अणगुरु जान नुगमेताओंका चिंतवन करने लगे। उसी समय लोकांतिक देय आये, और प्रभुके वैराग्य भावोंकी सराहना करके उन्हें पैराग्यमें स्तुतिपूर्वक दृढ करके चले गये।
पश्चात् इन्दादि देवों व नरेन्दोंने उत्साहपूर्वक तप कल्याणकका समारोह किया। भगवान ऋषभनाथने सिद्धोंको नमस्कार करके स्वयं दीक्षा ली, और भक्तिवश उनके साथ १००० राजाओंने भी देखादेखी दीक्षा ले ली, सो दुर्द्धर तप करनेको असमर्थ होकर नाना प्रकारके भेष धारण कर ३६३ पाखण्ड मत घला दिए।
इन दीक्षा लेनेवालोंमें भरतजीका पुत्र मारीच भी था। सो जब केवलज्ञान हुआ और भरतजी उस समय वन्दनाको घले गये, और वन्दना करके मनुष्योंके कोठे (सभा) में बैठकर धर्मोपदेश सुनने लगे। धर्मोपदेश सुननेके अनन्तर भरतजीने पूछा-हे ऋषिनाथ! हमारे वंशमें और भी कोई आपके जैसा धर्मोपदेश प्रवर्तक अथवा चक्रवर्ती होगा? तब प्रभुने कहा___ मारीचका जीय नारायण होकर फिर तीर्थकर भी होगा मारीच समवशरणमें ही बैठा था, सो यह बात सुनकर हर्षोन्मत्त हो दीक्षा त्याग करके यह अनेक प्रकारके पापकर्मोमें प्रवृत्त हो गया, और पंचाग्नि तपकर अन्त समय प्राण छोडकर पांचवें स्थर्गमें देय हुआ।
यहांसे मिथ्यात्य अयस्थामें प्राण छोडकर अनेक अस स्थावर योनियोंमें जन्म मरण करनेके अनन्तर राजगृही नगरके राजा विश्वभूतिकी रानी जयंतिके विक्षनंदी नामका पुत्र हुआ। एक