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श्री जैनतत- कथासंग्रह
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दिनों में समस्त गृहारंभको त्याग कर श्री जिनेन्द्र भगवानका अभिषेक और पूजन विधान करे, दिनमें तीनवार सामायिक या स्वाध्याय करे और उद्यापनकी शक्ति न होवे तो दूना व्रत करे।
उद्यापनकी विधि निम्न प्रकार है-आम, जाम, केला, नारंगी, बिजौरा, श्रीफल, अखरोट, खारक, बादाम, द्राक्ष इत्यादि प्रत्येक प्रकारके ६३ त्रेसठ फल और भांति-भांतिके उत्तम पकदानों सहित अष्ट द्रव्यसे भगवानकी महाभिषेकपूर्वक पूजन करे, और जिनालय में चन्दोवा, चंवर, छत्र, झालर धण्टादि उपकरण भेंट करे, तथा त्रेसठ ग्रंथ लिखाकर श्रावक श्राविकाओंमें ज्ञानावरण कर्मके क्षय होनेके लिए बांटे व जिनालयके सरस्वती भंडारमें ग्रंथ पधरावे, खूब उत्सव करे, अतिथियोंको भोजन देवे व दीन दुःखीका यथा सम्भव दुःख दूर करे, इत्यादि ।
सुमति रोठानी इस प्रकार व्रतकी विधि सुनकर घर आई और श्रद्धा सहित यह व्रत पालन करके शक्ति अनुसार उद्यापन भी किया, सो आयुके अंतमें सन्यास मरण करके दूसरे स्वर्गमें ललितांग देवको पट्टरानी देवी हुई।
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पुण्यके प्रभावसे यह स्वयंप्रभा देवी नाना प्रकारके सुखोंको भोगती हुई । पश्चात् आयु पूर्णकर वहांसे चयकर इसी जम्बूद्वीपके पूर्वविदेह सम्बन्धी पुष्पकलावती देशकी पुण्डरीकनी नगरीसें यज्ञदत्त चक्रवर्तीके लक्ष्मीमती नामकी रानीके गर्भसे श्रीमती नामकी पुत्री हुई, सो वजजंघ राजाके साथ ब्याही गई।
एक दिन ये दम्पति वनक्रीडाको गये थे, सो वहां सर्पसरोवर के तटपर आये हुए चारण मुनिको आहार दान दिया और मुनि दानके प्रभावसे ये दम्पति भोगभूमिमें उत्पन्न हुए। फिर वहांसे चयकर श्रीमतीके जीवने जम्बूद्वीप अवतार लेकर