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श्री रत्नत्रय व्रत कथा
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छात्रावास, अनाथालय, पुस्तकालय, आदि संस्थाएं धोब्यरूपसे स्थापित करे और निरन्तर रत्नत्रयकी भावना भाता रहे।
इस प्रकार श्री मुनिराजने राजा वैश्रवणको उपदेश दिया सो राजाने सुनकर श्रद्धापूर्वक इस व्रतको यथा विधि पालन कर किया पूर्ण अवधि होने पर उत्साह सहित उद्यापन किया ।
पश्चात् एक दिन वह राजा एक बहुत बड़े वड़के वृक्षको जड़से उखड़ा हुआ देखकर वैराग्यको प्राप्त हुआ और दीक्षा लेकर अन्त समय समाधिमरण कर अपराजित नाम विमानमें अहमिंद्र हुआ, और फिर वहांसे चयकर मिथिलापुरीमें महाराजा कुम्भरायके यहां, सुप्रभावती रानीके गर्भसे मल्लिनाथ तीर्थकर हुये सो पंचकल्याणकको प्राप्त होकर अनेक भव्य जीवोंको मोक्षमार्गमें लगाकर आप परम धाम (मोक्ष) को प्राप्त हुये ।
इस प्रकार वैश्रवण राजाने व्रत पालनकर स्वर्गके मनुष्योंके सुखको प्राप्त होकर मोक्षपद प्राप्त किया, और सदाके लिये जन्म मरणादि दुःखोंसे छुटकर अविनाशी स्वाधीन सुखोंको प्राप्त हुये। इसलिये जो नरनारी मन, वचन, कायसे इन व्रतकी भावना भाते है। अर्थात् रत्नत्रयको धारण करते है। वे भी राजा वैश्रवणके समान स्वर्गादि मोक्ष सुखको प्राप्त होते हैं। महाराज वैश्रवणने, रत्नत्रय व्रत पाल । aat rent faafर्ह, दोष नमै त्रैकाल ॥