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श्री जैनव्रत-कथासंग्रह
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***** (१०॥ श्री आकाश पंचमी व्रत कथा)
द्वादशांगवाणी नमू, धरूं ह्रदय शुभ ध्यान। कथाऽऽकाश पंचमी तनी, कहूं स्वपर हित जान ।।
आर्य खण्डके सोरठ देशमें तिलकपुर नामका एक विशाल नगर था। वहां महीपाल नामका राजा और विचक्षणा नामक रानी थी। उसी नगरमें भवशाल नामका व्यापारी रहता था उसकी नन्दा नामकी स्त्री से विशाला नामकी पुत्री उत्पन्न हुई। ___ यद्यपि यह कन्या अत्यन्त रूपयान थी, तथापि इसके मुखपर सफेद कोढ़ हो जानेसे सारी सुन्दरता नष्ट हो गई थी। इसलिये उसके माता पिता तथा वह कन्या स्वयं भी रोया करती थी, परंतु कर्मोसे क्या यश है? निदान माताका उपदेशसे पुत्री धर्म ध्यानसे रत रहने लगी, जिससे कुछ दुःख कम हुआ।
एक दिन एक चैध आया और उसने सिद्धचक्र की आराधना करके औषधि दी जिससे उस कन्याका रोग दूर हो गया। तब उस भद्रशालने अपनी कन्या उसी वैद्यको व्याह दी। पश्चात् वह पिंगल वैद्य उस विशाला नामकी पणिक पुत्रीके साथ कितने ही दिन पीछे देशाटन करता हुआ, चितोड़गढ़की ओर आया, यहां पर भीलोंने उसे मारकर सब धन लूट लिया।
निदान विशाला यहांसे पति और द्रव्य रहित हुई नगरके जिनालयमें गई और जिनराजके दर्शन करके वहां तिष्ठे हुए श्रीगुरुको नमस्कार करके बोली-प्रभु! मैं अनाथनी हूँ, मेरा सर्वस्व खो गया, पति भी मारा गया और द्रव्य भी लूट गया। अब मुझे कुछ नहीं सूझता है कि क्या करूं, कृपाकर कुछ कल्याणका मार्ग बताईये।