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श्री निर्दोष सप्तमी व्रत कथा ********************************
भादो सुदी ७ को आवश्यक वस्त्रादि परिग्रह रख शेष समस्त आरम्भ य परिग्रहका त्याग करके श्री जिनमंदिरमें जाये
और प्रभुका अभिषेक आरम्भ करे। अर्थात् यहां पर दूधका कुण्ड भरके उसमें प्रतिमा स्थापन करे, और पंचामृतका स्नान कराने के पश्चात् अष्टद्रव्यसे भाव सहित पूजन करे और स्वाध्याय करे।
इस प्रकार धर्मध्यानमें बिताये। पक्षात् दूसरे दिन हर्षोत्सव सहित जिनदेवका पूजन अर्चन करके अतिथिको भोजन कराकर और दीन दुःखियोंको यथावश्यक दान देकर आप भोजन करे | इस प्रकार सात वर्ष तक यह व्रत करके पश्चात् विधिपूर्वक उद्यापन करे और यदि उद्यापनकी शक्ति न हो, तो दूने वर्षों तक व्रत करे।
उद्यापन इस प्रकार करे-बारह प्रकारका पकवान और बारह प्रकारके फल तथा मेवा श्रावकोंको बांटे। बारह बारह कलश, झारी, झालर, चन्दोया आदि समस्त उपकरण जिन मंदिरमें चढाये। बारह शास्त्र लिखाकर पधराये और चतुर्विध दान करे।
राजाने यह सब व्रत विधान सुनकर स्पशक्ति अनुसार श्रद्धा सहित इस व्रतको पालन किया और अन्तमें आयु पूर्ण कर (समाधिमरण कर) सातये स्वर्गमें देव हुआ। और भी जो भव्य जीय अद्धा सहित इस प्रतको पालेंगे तो ये भी उत्तमोत्तम सुखोंको प्राप्त होंगे।
नरपति पृथ्वी पाल अरु, अरदास गुणवान। व्रत सातम निर्दोष कर लहो स्वर्ग सुखदान ।।