________________
श्री निर्दोष सप्तमी व्रत कथा [६७ ******************************** थी) को सुनकर लक्ष्मीमती सेठानीने समझा कि नन्दनीके घर गायन हो रहा है, तब वह सोचने लगी कि नन्दनीके घर तो कोई मंगल कार्य नहीं हैं अर्थात् व्याह य पुत्र जन्मादि उत्सय तो कुछ भी नहीं है तब किस कारण गायन हो रहा है? अच्छा चलकर पूर्वी तो सही क्या बात है? |
ऐसा विचार कर लक्ष्मीमती सहज स्वभावसे हंसती हुई नन्दनीके घर गई और नन्दनीसे हंसते हंसते पूछा-ऐ बहिन! तुम्हारे घर कोई मंगल कार्य है ऐसा तो सुना ही नहीं गया, तब यह गायन किस लिए होता रहता है, कृपया बताओ। ___ तब नन्दनी रीस करके बोली-अरी बाई! तुझे हंसीकी पड़ी है और मुझपर दुःखका पहाड़ तूट पड़ा है, मेरा कुलका दीपक प्यारा, आंखोंका सारा पुत्र सर्पके काटनेसे मर गया है. इसीसे मेरी नींद और भूख प्यास सब चली गई हैं. मुझे संसारमें अंधेरा लगता है।
दुःखियोंने दुःख रोया, सुखियोंने हंस दिया। मुझे रोना आता है और तुझे हंसना । जा जा! अपने घर! एक दिन तुझे भी अतुल दुःख आवेगा, तब जानेगी कि दूसरेका दुःख कैसा होता है?
इस पर लक्ष्मीमती अपने घर चली गई और नन्दनी उससे नि:कारण पैरका सांप मंगाया, और एक घड़े में घर जाकर लक्ष्मीमतीके घर भिजया दिया, और कहला दिया कि इस घडेमें सुन्दर हार रखा है सो तुम पहिरो।
नन्दनीका अभिप्राय था कि जब लक्ष्मीमती घर्डमें हाथ डालेगी तो सांप इसे काटेगा और वह दु:खियोंकी हंसी करनेका फल पायेगी।