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श्री जैनव्रत-कथासंग्रह
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ली और घोर तपश्चरण किया और तपके प्रभावसे थोड़े ही कालमें केवलज्ञान प्राप्त करके ये सिद्ध पदको प्राप्त हुए, और रानी पद्मिनी जीवने भी दीक्षा ली, सो वह भी तपके प्रभावसे स्त्रीलिंग छेदकर सोलहवें स्वर्गमें देव हुआ वहांसे चयकर मनुष्य भव लेकर मोक्षपद प्राप्त करेगा।
इस प्रकार ईश्वरदत्त सेठ और चंदनाने इस चंदनषष्ठी व्रतके प्रभावसे नरसुरके सुख भोगकर मोक्ष प्राप्त किया और जो नरनारी यह व्रत पालेंगे ये भी अवश्य उत्तम पद पावें । पण यष्टीकृत ई सुजान । अरु fre नारी चन्दना, पाया सुख महान ।
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१३ श्री निर्दोष सप्तमी व्रत कथा
सहित आठ अरु वीस गुण, नमूं साधु निर्ग्रन्थ। सप्तमी व्रत निर्दोषकी, कथा कह गुण ग्रन्थ ॥ मगध देशके पाटलीपुत्र (पटना) नगरमें पृथ्वीपाल राजा राज्य करता था । उसकी रानीका नाम मदनावती था। उसी नगरमें अर्हदास नामका एक सेठ रहता था जिसकी लक्ष्मीमती नामकी स्त्री थी और एक दूसरा सेठ धनपति जिसकी स्त्रीका नाम नन्दनी था, नन्दनी सेठानीके मुरारी नामका एक पुत्र था, सो सांपके काटने से मर गया इसलिये नन्दनी तथा उसके घरके लोग अत्यन्त करुणाजनक विलाप करते थे अर्थात् सब ही शोकमें निमग्न थे ।
नन्दनी तो बहुत शोकाकुल रहती थी। उसे ज्यों ज्यों समझाया जाता था त्यों त्यों अधिकाधिक शोक करती थी। एक दिन नन्दनीके रूदन (जिसमें पुत्रके गुणगान करती हुई रोती