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श्री जैनद्रत-कथासंग्रह * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * श्रद्धान् कर और सम्यग्दर्शनके निशंकित आदि आठ अंगोंका पालन करके उसके २५ मल दोषोंका त्यागकर, तष निर्मल सम्यग्दर्शन सधेगा | इस प्रकार सम्यक्तपूर्वक आयकके अहिंसा, सत्य, अस्तेय ब्रह्मचर्य और परिग्रह परिमाण आति १२ व्रतको पालन करते हुए आ पनी प्रसको अ. गालन कर।
यह प्रत भादों सुदी ५ को किया जाता है। इस दिन चार प्रकारका आहार त्यागकर 'उपवास धारण करे, और अष्ट प्रकारके द्रष्यसे श्रीजिनालयमें जाकर भगवानका अभिषेक पूर्वक पूजन करे। पश्चात् रात्रिके समय खुले मैदानमें या छत (अगासी) पर बैठकर भजनपूर्वक जागरण करे। तथा वहां भी सिंहासन रखकर श्री चौवीस तीर्थंकरोंकी प्रतिमा स्थापन करे और प्रत्येक प्रहरमें अभिषेक करके पूजन करे, और यदि उस समय उस स्थान पर वर्षा आदिके कारण कितने ही उपसर्ग आवे तो सब सहन करे परंतु स्थानको न छोडे ।
तीनों समय महामंत्र नवकारके १०८ जाप करे। इस प्रकार ५ वर्ष तक करे। जब व्रत पुरा हो जाये तो उत्साह सहित उद्यापन करे।
छन्त्र, नमर, सिंहासन, तोरण, पूजनके बर्तन आदि प्रत्येक ५ (पांच) नंग मंदिरमें भेट करे, और कमसे कम पांच शास्त्र पधराये! चार प्रकारके संघको चारो प्रकारका दान देये। और भी विशेष प्रभावना करे। इस प्रकार विशाला कन्याने श्रद्धापूर्वक बारह व्रत स्वीकार किये, और इस आकाशपंचमी व्रतको भी विधि संहित पालन किया। पश्चात् समाधिमरण कर वह चौथे स्वर्गमें मणिभद्र नामका देव हुआ।
यहां उसने देयाँगनाओं सहित क्रीजा करते हुए अनेक तीर्थोके दर्शन, पूजा, यंदना तथा समोशरण आदिकी वंदना की।