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श्री रोहिणी व्रत कथा ******************************** सातवें नर्क गया। यहांसे तेतीस सागर दुःख भोगकर निकला। सो अनेक कुयोनियों में भ्रमण करता हुआ तूने एक यणिकके घर जन्म लिया। सो अत्यन्त घृणित शरीर पाया। लोग दुर्गन्धके मारे तेरे पास न आते थे।
तब तूने मुनिराजके उपदेशसे रोहिणीवत किया, उसके फलसे तू स्वर्गमें देव हुआ। और फिर वहांसे चयकर विदेह क्षेत्रमें अर्ककीर्ति चक्रवर्ती हुआ वहांसे दीक्षा ले तप करके देवेन्द्र हुआ। और स्वर्गसे आकर तू अशोक नामक राजा हुआ है।
राजा अशोक यह वृत्तांत सुनकर घर आया और कुछ कालतक सानन्द राज्य भोगा। पश्चात् एक दिन यहां वासुपूज्य भगवानका समवशरण आया सुनकर राजा बन्दना को गया और धर्मोपदेश सुनकर अत्यन्त वैराग्यको प्राप्त हो श्री जिन दीक्षा ली। रोहिणी रानीने भी दीका ग्रहण की।
सो राजा अशोकने तो उसी भयमें शुक्लध्यानसे घातिया कर्मोका नाश कर केवल ज्ञान प्राप्त किया और मोक्ष गये
और रोहिणी आर्या भी समाधिमरण कर स्त्रीलिंग छेद स्वर्गमें देय हुई। अब यह देव वहांसे घयकर मोक्ष प्रारू करेगा। इस प्रकार राजा अशोक और रानी रोहिणी, रोहिणीव्रतके प्रभावसे स्थर्गादिक सुख भोगकर मोक्षको प्राप्त हुए व होंगे इसी प्रकार अन्य भष्य जीष भी श्रद्धासहित यह प्रत पालेंगे ये भी उत्तमोत्तम सुख पावेंगे।
व्रत रोहिणी रोहिणी कियो, अरु अशोक भूपाल। स्वर्ग मोक्ष सम्पति लही, 'दीप' नवावत भाल।।