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२४!ीना:-mare ******************************** प्रमाण प्रभायनांगको बढानेयाला उत्सय करें अथवा सर्यथा असमर्थ हो तो द्विगुणित वर्षो प्रमाण (२० वर्ष) ग्रत करे। इस प्रतका फल स्वर्ग तथा मोक्षकी प्राप्ति होती हैं।
यह उपदेश व प्रतकी विधि सुन उन चारों कन्याओंने मुनिराजकी साक्षी पूर्वक इस अतके स्वीकार किया, और निजघरोंको गई। पश्चात् दश वर्ष तक उन्होंने यथाशक्ति व्रत पालकर उद्यापन किया सो उत्तमक्षमादि धर्मोका अभ्यास हो जानेसे उन चारों कन्याओंका जीवन सुख और शांतिमय हो गया। ये चारों कन्याएं इस प्रकार सर्व स्त्री समाजमें मान्य हो गयी। पश्चात् वे अपनी आयु पूर्ण कर अंत समय समाधि मरण करके महाशुक्र नामक दश स्वर्गमें अमरगिरि अमरचूल देवप्रभु और पद्मसारथी नामक महदिक देव हुए।
यहांपर अनेक प्रकारके सुख भोगते और अकृत्रिम जिन चैत्यालयोंकी भक्ति वन्दना करते हुए अपनी आयु पूर्णकर वहांसे चले सो जम्बूद्वीपके भरतक्षेत्रमें मालया प्रांतके उज्जैन नगरमें मूलभद्र राजाके घर लक्ष्मीमती नामकी रानीके गर्भसे पूर्णकुमार, देवकुमार, गुणचंद्र और पद्मकुमार नामके रूपयान 4 गुणदान पुत्र हुए और भले प्रकार बाल्यकाल व्यतित करके कुमारकालमें सब प्रकारकी विद्याओंमें निपुण हुए। पश्चात् इन चारोंका व्याह नन्दनगरके राजा इण तथा उनकी पत्नी तिलकसुन्दरीके गर्भसे उत्पन्न कलायती, ग्रामी, इन्दुगात्री और कंकू नामकी चार अत्यंत रूपयान तथा गुणयान कन्याओंके साथ हुआ, और ये दम्पति प्रेमपूर्वक काल क्षेप करने लगे।
एक दिन राजा मूलभदने आकाशमें बादलोंको बिखरे देखकर संसारके विनाशीक स्वरूपका चिन्तवन किया और द्वादशानुप्रेक्षा भायी। पश्चात् ज्येष्ठ पुत्रको राज्यभार सौंपकर