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द्वारा स्त्रीलिंग छेदकर सोलहवें (अच्युत) स्वर्गमें देव हुई। वहांसे बाइस सागर आयु पूर्णकर वह देव, जम्बूद्वीपके विदेहक्षेत्र संबंधी अमरावती देशके गंधर्व नगरमें राजा श्रीमंदिरकी रानी महादेवीके सीमन्धर नामका तीर्थंकर पुत्र हुआ सो योग्य अवस्थाको प्राप्त होकर राज्योचित सुख भोग जिनेश्वरी दीक्षा ली और घोर तपश्चरण कर केवलज्ञान प्राप्त करके बहुत जीवोंको धर्मोपदेश दिया तथा आयुके अंतमें समस्त अघाति कर्मोंका भी नाश कर निर्वाण पथ प्राप्त किया।
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श्री श्रुतस्कन्ध व्रत कथा
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इस प्रकार इस व्रतको धारण करनेसे कालभैरवी नामकी ब्राह्मण कन्याने सुरनर भके सुखोंको भेगकर अक्षय अनिश स्वाधीन मोक्षसुखको प्राप्त कर लिया, तो जो अन्य भव्यजीव इस व्रतको पालन करेंगे उनको भी अवश्य ही उत्तम फलकी प्राप्ति होवेगी ।
षोडशकारण व्रत धरो, कालभैरवी सार । सुरनरके सुख 'दीप' लह, लहो मोक्ष अधिकार ॥ १ ॥ O
श्रुतस्कन्ध व्रत कथा
४ श्री श्रुतस्कन्ध वन्द्रं सदा, मन वच शीश नवाय । जा प्रसाद विद्या लहूँ, कहूँ कथा सुखदाय ॥१ ॥
जम्बूद्वीपके भरतक्षेत्र में एक अंग नामका देश हैं, उसके पाटलीपुत्र (पटना) नगरमें राजा चन्द्ररुचिकी पट्टरानी चंद्रप्रभा के श्रुतशालिनी नामकी एक अत्यंत रूपवान कन्या थी, सो राजाने इस कन्याको जिनमति नामकी आर्या (गुरानी) के पास पढ़ानेको बिठाई जिससे वह थोडी ही दिनोंमें विद्यामें निपुण