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श्री जैनव्रत-कथासंग्रह ********************************
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श्री दशलक्षण व्रत कथा)
उत्तमक्षमा, मार्दय, आर्जय, सत्य, शौच. संयम, तप, जान। ८ ९ १० त्याग, आकिंचन्य, ब्रह्मचर्य, मिल ये दशलक्षण धर्म यखान॥
ये स्वाभाविक आतमके गुण, जे नर धरै सुधी गुणवान। तिन पद वन्द्य कथा दशलक्षण, व्रतकी कहूँ सूनो मन आन ।
घातकी खण्ड द्वीपके पूर्व विदेह क्षेत्रमें विशाल नामका एक नगर है। यहांका प्रियंकरा नामक राजा अत्यंत नितिनिपुण और प्रजावत्सल था। रानीका नाम प्रियंकर था, और इसके गर्भसे उत्पन्न हुई कन्याका नाम मगांकलेखा था।
इसी राजाके मंत्रीका नाम मतिशेखर था। इस मंत्रीके उसकी शशिप्रभा स्त्रीके गर्भसे कमलसेना नामकी कन्या थी।
इसी नगरके गुणशेखर नामक एक सेठके यहां उसकी शीलप्रभा नामकी सेठानीसे एक कन्या मदनयेगा नामकी हुयी थी। और लक्षभट नामक ब्राह्मणके घर चन्द्रभागा भार्यासे रोहिणी नामकी कन्या हुई थी।
ये चारों (मृगांकलेखा, कमलसेना, मदनयेगा और रोहिणी) कन्याएं अत्यंत रूपयान, गुणयान तथा बुद्धिमान थी! हे सदैव धर्माधरणमें सावधान रहती थी। एक समय यसंतऋतु में ये चारों कन्याएं अपने अपने माता पिताकी आज्ञा लेकर पनक्रीडाके लिये निकली, सो भ्रमण करती करती कुछ दूर निकल गयी। जबकि ये बनकी स्वाभाषिक शोभाको देखकर आल्हादित हो रही थी कि उसी समय उनकी दृष्टि उस यनमें विराजमान श्री महामुनिराज