Book Title: Jain Vidya 26
Author(s): Kamalchand Sogani & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 23
________________ जैनविद्या 26 आत्मस्वभाव से भिन्न स्त्री-पुत्रादिक, धन-धान्यादिक सभी चेतन-अचेतन पदार्थ 'परद्रव्य' हैं (17) और इनसे भिन्न ज्ञानशरीरी, अविनाशी निज भगवान आत्मा स्वद्रव्य' है (18)। जो मुनि परद्रव्यों से परान्मुख होकर स्वद्रव्य का ध्यान करते हैं, वे निर्वाण को प्राप्त करते हैं (19)। अतः जो व्यक्ति संसाररूपी महार्णव से पार होना चाहते हैं, उन्हें अपने शुद्धात्मा का ध्यान करना चाहिए। आत्मार्थी मुनिराज सोचते हैं कि मैं किससे क्या बात करूँ; क्योंकि जो भी इन आँखों से दिखाई देता है, वे सब शरीरादि से जड़ हैं, मूर्तिक हैं, अचेतन हैं, कुछ समझते नहीं हैं और चेतन तो स्वयं ज्ञानस्वरूप है (29)। ___ जो योगी व्यवहार में सोता है, वह अपने आत्मा के हित के कार्य में जागता है और जो व्यवहार में जागता है, वह अपने कार्य में सोता है (31)। इस प्रकार जानकर योगीजन समस्त व्यवहार को त्यागकर आत्मा का ध्यान करते हैं (32)। सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्र की परिभाषा बताते हुए आचार्यदेव कहते हैं कि जो जाने सो ज्ञान; जो देखे सो दर्शन और पुण्य और पाप का परिहार ही चारित्र है अथवा तत्त्वरुचि सम्यग्दर्शन, तत्त्व का ग्रहण सम्यग्ज्ञान एवं पुण्य-पाप का परिहार सम्यक्चारित्र है। ___ तपरहित ज्ञान और ज्ञानरहित तप - दोनों ही अकार्य हैं, किसी काम के नहीं हैं, क्योंकि मुक्ति तो ज्ञानपूर्वक तप से होती है (59)। ध्यान ही सर्वोत्कृष्ट तप है, पर ज्ञानध्यान से भ्रष्ट कुछ साधुजन कहते हैं कि इस काल में ध्यान नहीं होता (73), पर यह ठीक नहीं है; क्योंकि आज भी सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र के धनी साधुजन आत्मा का ध्यान कर लौकान्तिक देवपने को प्राप्त होते हैं और वहाँ से चयकर आगामी भव में निर्वाण की प्राप्ति करते हैं (77)। पर जिनकी बुद्धि पापकर्म से मोहित है, वे जिनेन्द्रदेव तीर्थंकर का लिंग (वेष) धारण करके भी पाप करते हैं; वे पापी मोक्षमार्ग से च्युत ही हैं (78)। निश्चयतप का अभिप्राय यह है कि जो योगी अपनी आत्मा में अच्छी तरह लीन हो जाता है, वह निर्मलचारित्र योगी अवश्य निर्वाण की प्राप्ति करता है (83)। इस प्रकार मुनिधर्म का विस्तृत वर्णन कर श्रावकधर्म की चर्चा करते हुए सबसे पहले निर्मल सम्यग्दर्शन को धारण करने की प्रेरणा देते हैं (86)। कहते हैं कि अधिक कहने से क्या लाभ है? मात्र इतना जान लो कि आज तक भूतकाल में जितने सिद्ध हुए हैं और भविष्यकाल में भी जितने सिद्ध होंगे, वह सब सम्यग्दर्शन का ही माहात्म्य है (88)।

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