Book Title: Jain Vidya 26
Author(s): Kamalchand Sogani & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 43
________________ जैनविद्या 26 कान्ति गुण - अष्टपाहुड गुणों के भण्डार हैं। इनमें समत्व कान्ति, दयाधर्म, श्रुतचिन्तन, बोधतत्त्व, मुक्ति एवं आचरण की विशुद्धि है। शीलपाहुड में जीवदया, इन्द्रियदमन, शील, तप, दर्शन विशुद्धि एवं ज्ञानशुद्धि की विशेषता कान्ति गुण को उत्पन्न करती है। जीवदया दम सच्चं अचोरियं बंभचेर संतोसे।।19।। शी.पा. सीलं तवो विसुद्धं दसणसुद्धी य णाणसुद्धी य। सीलं विसयाण अरी, सीलंमोक्खस्स सोवाणं।।20।। शी.पा. इस तरह अष्टपाहुड में अलंकार, रस, छंद आदि के साथ अनेक गुण भी विद्यमान हैं। ये सभी परमार्थ के दर्शन करानेवाले हैं। इनके मूल में शब्द-अर्थमूलक रहस्य, अध्यात्म का अनुगति, लय, यति एवं अन्तरात्मा में परमात्म के दर्शन कराने की अनेक दृष्टियाँ हैं। पाहड के गाथात्मक अनुबन्ध में प्रबन्ध के शास्त्रीय पक्ष एवं जनचेतना के विविध आयाम हैं। 861, अरविन्द नगर उदयपुर

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