Book Title: Jain Vidya 26
Author(s): Kamalchand Sogani & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 58
________________ जैनविद्या 26 47 1. आचार पाहुड, 2. अलाप पाहुड, 3. अंग पाहुड, 4. आराहणा पाहुड, 5. बंध पाहुड, 6. बुद्धि या बोधि पाहुड, 7. चरण पाहुड 8. चूलिया पाहुड, 9. चूर्णि पाहुड, 10. दिव्व पाहुड, 11. द्रव्य पाहुड, 12. दृष्टि पाहुड, 13. इयन्त पाहुड, 14. जीव पाहुड, 15. जोणि पाहुड, 16. कर्मविपाक पाहुड, 17. कर्म पाहुड, 18. क्रियासार पाहुड, 19. क्षपण पाहुड, 20. लब्धि पाहुड, 21. लोय पाहुड, 22. नय पाहुड, 23. नित्य पाहुड, 24. नोकम्म पाहुड, 25. पंचवर्ग पाहुड, 26. पयड्ढ पाहुड, 27. पय पाहुड, 28. प्रकृति पाहुड, 29. प्रमाण पाहुड, 30. सलमी पाहुड, 31. संठाण पाहुड, 32. समवाय पाहुड, 33. षट्दर्शन पाहुड, 34. सिद्धान्त पाहुड, 35. सिक्खापाहुड, 36. स्थान पाहुड, 37. तत्त्व पाहुड, 38. तोय पाहुड, 39. ओघत पाहुड, 40. उत्पाद पाहुड, 41. विद्या पाहुड, 42. वस्तु पाहुड, 43. विहिय या विहय पाहुड। 'संयमप्रकाश' में उपरिलिखित पाहुडों के अतिरिक्त नामकम्मपाहुड, योगसार पाहुड, निताय पाहुड, उद्योत पाहुड, शिखा पाहुड तथा ऐयन्न पाहुड के नाम प्राप्त होते हैं। 2 यहाँ ‘पाहुड' शब्द के अर्थ पर भी कुछ प्रकाश डालना आवश्यक प्रतीत होता है। पाहुड अर्थात् प्राभृत, जिसका अर्थ होता है - 'भेंट' | आचार्य जयसेन एक दृष्टान्त के माध्यम से 'पाहुड' का अर्थ स्पष्ट करते हुए बतलाते हैं कि - जैसे देवदत्त नाम का कोई व्यक्ति राजा का दर्शन करने के लिए कोई 'सारभूत वस्तु' राजा को देता है तो उसे प्राभृतया भेंट कहते हैं उसी प्रकार परमात्मा के आराधक पुरुष के लिए निर्दोष 'परमात्मा रूपी राजा' का दर्शन कराने के लिए यह शास्त्र भी प्राभृत (भेंट) हैं। 3 आचार्य यतिवृषभ के अनुसार 'जम्हा पदेहि पुदं (फुडं) तम्हा पाहुडं' अर्थात् जो पदों से स्फुट हो उसे पाहुड कहते हैं । 4 जयधवला के रचयिता आचार्य वीरसेन के अनुसार- 'प्रकृष्टेन तीर्थंकरेण आभृतं प्रस्थापितं इति प्राभृतम्।' अर्थात् तीर्थंकर के द्वारा प्राभृत अथवा प्रस्थापित किया गया है वह प्राभृत है। प्रकृष्ट आचार्यों के द्वारा जो धारण अथवा व्याख्यान किया गया है अथवा परम्परारूप से लाया गया है, वह प्राभृत है। अतः यह स्पष्ट है कि तीर्थंकरों के उपदेश रूप द्वादशांग वाणी से सम्बद्ध ज्ञानरूप ग्रन्थों को हम 'पाहुड' कहते हैं।

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