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जैनविद्या 26
अप्रेल 2013-2014
दर्शनपाहुड : एक अध्ययन
____ - डॉ. कस्तूरचन्द जैन 'सुमन'
'अष्टपाहुड' आचार्य कुन्दकुन्द की एक आध्यात्मिक रचना है। प्रस्तुत रचना में उन्होंने क्रमशः दर्शन, सूत्र, चारित्र, बोध, भाव, मोक्ष, लिंग और शील विषयों पर अपने विचार प्रस्तुत किये हैं।
दर्शनपाहुड की चौंतीसवीं गाथा से प्रतीत होता है कि अष्टपाहुड की रचना मानवजाति के उत्थान लिए की गयी थी। गाथा निम्न प्रकार है -
लखूण य मणुयत्तं सहियं तह उत्तमेण गुत्तेण।
लक्ष्ण य सम्मत्तं अक्खयसुक्खं च मोक्खं च।।34।। अर्थात् - यह जीव उत्तमगोत्र रचित मनुष्य पर्याय को तथा वहाँ सम्यक्त्व को प्राप्त कर अक्षय सुख और मोक्ष को प्राप्त होता है।
__ प्रस्तुत गाथा-प्रसंग से ज्ञात होता है कि मनुष्य-पर्याय की प्राप्ति और उसमें भी उत्तम गोत्र को पाकर मनुष्य चाहे तो सम्यक्त्व को प्राप्त कर अक्षय सुख मोक्ष को प्राप्त कर सकता
___ मनुष्य पर्याय और उत्तम गोत्र की प्राप्ति के पश्चात् भी मनुष्य में मनुष्यता, श्रुतिशास्त्रज्ञान, श्रद्धा और संयम की उपलब्धि दुर्लभ कही गयी है। किसी दार्शनिक ने लिखा भी है - 'मानुसत्वं' सुइ सद्धा संयमो चतुदुल्लभाः'।