Book Title: Jain Vidya 26
Author(s): Kamalchand Sogani & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 59
________________ 48 जैनविद्या 26 विषयवस्तु दर्शनपाहुड में आचार्य कुन्दकुन्द ने छत्तीस (36) गाथाओं के माध्यम से सम्यग्दर्शन की उपयोगिता एवं महत्ता का वर्णन किया है, जो कि अपने-आप में अभूतपूर्व है। मंगलाचरण के पश्चात् आरम्भ में ही सम्यग्दर्शन की महिमा बताते हुए कहते हैं कि - जिनेन्द्र भगवान ने सम्यग्दर्शन को धर्म का मूल कहा है, इसलिए जो जीव सम्यग्दर्शन से रहित हैं वे वन्दनीय नहीं हैं, चाहे वे अनेक शास्त्रों के पाठी व ज्ञाता हों, उग्र तप के धारी हों, सहस्रों वर्षों तक तप करते रहे हों, किन्तु यदि वे सम्यग्दर्शन से रहित हैं तो उन्हें आत्मा की प्राप्ति नहीं हो सकती। जिनेन्द्र भगवान के वचनों की श्रद्धा से रहित होने के कारण वे चतुर्गतिरूप संसार में भटकते रहते हैं। तत्पश्चात् आचार्य कहते हैं कि जो जीव सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र तीनों से ही भ्रष्ट हैं, वे तो भ्रष्टों में भी भ्रष्ट हैं; वे स्वयं का नाश तो करते ही हैं, अपने आश्रितों को भी वे नष्ट कर देते हैं। जिस प्रकार जड़ के नष्ट हो जाने पर उसके परिवार- स्कन्ध, शाखा पत्र, पुण्य और फल की अभिवृद्धि नहीं होती; उसी प्रकार सम्यग्दर्शनरूपी धर्म के मूल के नष्ट हो जाने पर या न होने पर संयमादि की अभिवृद्धि नहीं होती। तथा जो सम्यग्दर्शन के भ्रष्ट होकर अन्य सम्यग्दृष्टियों की वंदना नहीं करते वे लूले-लँगड़े और गूंगे होते हैं और उन्हें रत्नत्रय की प्राप्ति दुर्लभ रहती है। तथा इसी प्रकार जो जीव लज्जा, गारव और भय के कारण सम्यग्दर्शन से रहित लोगों की पूजा-वन्दनादि करते हैं, वे भी बोधि को प्राप्त नहीं होते। इसी प्रकार फिर आचार्य ने क्रमशः सम्यग्दर्शन के भेदों का वर्णन, बाह्य और अभ्यन्तर परिग्रह के भेद, निर्वाण कौन प्राप्त कर सकता है, जिनवचनरूपी औषध की महिमा, सम्यग्दृष्टि का लक्षण, व्यवहार और निश्चय से सम्यग्दर्शन को ही मोक्ष की प्रथम सीढ़ी बतलाना, श्रद्धावान जीव को ही सम्यक्त्व होता है, वन्दना करने योग्य कौन है? सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र ही मोक्ष के साधन हैं, चार आराधनाएँ मोक्ष का कारण हैं तथा सम्यग्दर्शन की महिमा आदि का वर्णन करते हुए आचार्य कहते हैं कि - जो काम हो सके वह करना चाहिए और जो न हो सके उसका श्रद्धान अवश्य करना चाहिए क्योंकि जिनेन्द्र भगवान ने श्रद्धान करनेवाले पुरुष को सम्यग्दर्शन कहा है। अन्त में स्थावर प्रतिमा क्या है, जिनेन्द्र भगवान के 1008 लक्षण तथा अतिशयों आदि का वर्णन और निर्वाण को कौन प्राप्त होते हैं, इसका वर्णन किया गया है। अतः यहाँ स्पष्टतया कहा जा सकता है कि सम्पूर्ण दर्शनपाहुड सम्यक्त्व की महिमा से ओत-प्रोत है।

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