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जैनविद्या 26
कहा जाता है कि आचार्य कुन्दकुन्द ने चौरासी (84) पाहुडग्रन्थ लिखे थे परन्तु वे सभी आज उपलब्ध नहीं हैं। मात्र 15 ग्रन्थ वर्तमान में उपलब्ध होते हैं जो निम्नलिखित
मूल नाम 1. पञ्चास्तिकाय पंचत्थिकाय प्रवचनसार
पवयणसारो नियमसार णियमसारो समयसार
समयपाहुडं द्वादशानुप्रेक्षा बारसअणुवेक्खा रयणसार
रयणसारो 7. दशभक्तिसंग्रह दशभक्तिसंग्गहो 8-15. अष्टपाहुड
अट्ठपाहुडं 'अष्टपाहुड' में आठ पाहुडग्रन्थों को संगृहीत किया गया है जो कि अनेक स्थानों से प्रकाशित हो चुका है। वे आठ पाहुड अधोलिखित हैं -
1. दंसणपाहुड 2. सुत्तपाहुड 3. चारित्तपाहुड 4. बोधपाहुड 5. भावपाहुड 6. मोक्खपाहुड 7. लिंगपाहुड 8. सीलपाहुड।
विक्रम की सोलहवीं (16वीं) शताब्दी में भट्टारक श्रुतसागरसूरि ने उक्त पाहुडों में से प्रथम छह पाहुडों पर संस्कृत भाषा में एक सुन्दर टीका भी लिखी है, जो 'षट्प्राभृतसंग्रह' के नाम से विख्यात है। प्रतीत होता है कि भट्टारक श्रुतसागरसूरि के समक्ष छह पाहुड ही उपलब्ध रहे होंगे, इसीलिए उन्होंने इन्हीं पर टीका लिखी। इसका प्रकाशन सन् 1920 ई. में माणिकचन्द ग्रन्थमाला, बम्बई से भी हुआ था। बाद में लिंगपाहुड और सीलपाहुड और उपलब्ध होने पर ‘अष्टपाहुड' के नाम से पुनः प्रकाशन हुआ।
उक्त पाहुडों के अतिरिक्त कुछ और पाहुडों के नामों के उल्लेख भी मिलते हैं। प्राकृत एवं जैन साहित्य में मूर्धन्य मनीषी डॉ. ए.एन.उपाध्ये ने अधोलिखित 46 पाहुडों की सूची प्रस्तुत की है -