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जैनविद्या 26
करता है। सत्काव्य आनन्ददायी होता है, यदि वही काव्य आध्यात्मिक विचारों से परिपूर्ण हो तो वैराग्य अवश्य ही उत्पन्न करेगा। संसार से विरक्ति आत्मानुभूति की अभिव्यक्ति में अवश्य होता है।
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शृंगार रस
शृंगार रस में संयोग और वियोग दोनों ही पक्ष होते हैं। आचार्य कुन्दकुन्द के पाहुडों में शृंगार रस का कहीं-कहीं पर ही प्रयोग हुआ है -
वट्टे यखंडेसु य भ य विसालेसु अंगेसु ।
अंगेसु य पप्पे य सव्वेसु य उत्तमं सीलं । । 25।। शी. पा.
हास्य रस
करुण रस
रौद्र रस
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धावदि पिंडणिमित्तं, कलहं काऊण भुंजदे पिंडं । अवरुपरूई संतो, जिणमग्गि ण होदि सो समणो ।।13।। लि.पा.
वृद्धावस्था का दयनीय चित्र देखिए -
सव्वे वि य परिहीणा रूवविरूवा वि वदिदसुवया वि ।।18।। शी.पा.
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भवसायरे अणंते, छिण्णुज्झिय केस - णह - रणालट्ठी ।
पुञ्जदि जदि को विजए, हवदि य गिरिसमधिया रासी ।। 20।। भा. पा
भयानक रस
अद्भुत रस
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वीभत्स रस -
एक्केक्कोंगुलिवाही, छण्णवदी होंति जाण मणुयाणं ।
अवसेसे य सरीरे रोया भण कित्तिया भीणया ।।37।। भा.पा.
भाव पाहुड की गाथा 17 से 29 इस रस को व्यक्त करती है। असुईवीहत्थेहि य कलिमलबहुलाहि गब्भवसहीहि । वसिओसि चिरं कालं अणेयजणणीण मुणिपवर ।।17।। भा.पा.
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पडिदेस - समय- पोग्गल - आउग - परिणाम - णाम - कालट्ठ । गहिउज्झियाइं बहुसो अनंतभवसायरे जीवो ||35 ।। भा.पा.
शान्त रस
आचार्य कुन्दकुन्द अध्यात्म के शिखर पर स्थित समस्त जनसमूह को शान्त रस का आस्वादन कराते हैं। सभी पाहुडों में इसके अनेक प्रकार हैं।