Book Title: Jain Vidya 26
Author(s): Kamalchand Sogani & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 34
________________ जैनविद्या 26 23 6. मोक्ख पाहुड - इस पाहुड में 106 गाथाएँ हैं। इसमें विज्जा, खमा, देही, गोरी, धत्ती, चुण्णा, छाया, कंति आदि गाथाएँ हैं। इसके अतिरिक्त चपला, विपुला, उग्गाहा, गाहू एवं अनुष्टुप छंद भी हैं। देखें अनुष्टुप - जं मया दिस्सदे रूवं तं ण जाणादि सव्वहा। जाणगं दिस्सदे णंतं तम्हा जंपेमि केण हं।।29।। मो.पा. गाहू - जो सुत्तो ववहारे, सो जोई जग्गदे सकज्जम्मि। जो जग्गदि ववहारे, सो सुत्तो अप्पणे कज्जे।।31।। मो.पा. गोरी - 20 गुरु 17 लघु और 37 अक्षर - विंस गुरु लहु सत्तरह, सत्ततिंस दक्खरा गोरी गाहा। यथा - एवं जिणपण्णत्तं, मोक्खस्स य पाहुडं सुभत्तीए। . जो पढदि सुणदि भावदि, सो पावइ सासयं सोक्खं।।106।। मो.पा. 7. लिंगपाहुड - इस पाहुड में 22 गाथाएँ हैं, जिनमें लज्जा, विज्जा, खम्म, देही, गोरी, धत्ती, चुण्णा, छाया, कंति आदि के लक्षण हैं। इसमें गाहू का भी प्रयोग है। यथा - पावोपहदिभावो सेवदि य, अबंभु लिंगिरूवेण। सो पावामोहिदमदी, हिंडदि संसार-कांतारे।।7।। लि.पा. 8. सीलपाहुड - इस पाहुड में 40 गाथाएँ हैं, जिनमें लज्जा, विज्जा, खम्म, देही, गोरी, धत्ती, चुण्णा, छाया, कंति, महामाया आदि गाथाओं के प्रयोग हैं। इसमें विपुला (16,22,34) छंद भी है। छाया का उदाहरण देखिए - जिणवयण-गहिदसारा, विसयविरत्ता तपोधणा धीरा। सील-सलिलेण ण्हादा, ते सिहालय-सुहं जंति।।38।। सत्तरह गुभिजुदा, तेवीसलहु त्ति अक्खर चालीसा। 17 गुरु 23 लघु और 40 अक्षर युक्त छाया। अट्टपाहडों में रस परिपाक - आचार्य कुन्दकुन्द-रचित पाहुडों में शान्तरस की प्रमुखता है। इसके अतिरिक्त अध्यात्म के इन पाहुडों में हास्य, करुण, वीभत्स, शृंगार, वीर, रौद्र आदि रसों का प्रयोग भी है। रस, आनन्द और हित वस्तु तत्व की अनुभूति है। रस सुख की ओर भी ले जाता है। आचार्य कुन्दकुन्द के पाहुडों में अनुभूति-परम अनुभूति, परमार्थ अनुभूति या विशुद्ध परिणाम की अनुभूति आभ्यन्तर चेतना का प्राण कहा जाता है। रस आत्म स्थित भावों को अभिव्यक्त

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