Book Title: Jain Vidya 26
Author(s): Kamalchand Sogani & Others
Publisher: Jain Vidya Samsthan

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Page 32
________________ जैनविद्या 26 21 13 35 गोरी - 20 1 7 37 (दं.पा. 13,14) देही - 21 15 36 (दं.पा. 18) खमा - 22 (दं.पा. 8,13,19,24) विज्जा - 23 11 34 2. सुत्तपाहुड - इस पाहुड में 27 गाथाएँ हैं। जिसमें कित्ति, चुण्णा, कंति, धत्ती, गोरी, देही एवं खमा का भी प्रयोग है। खमा का उदाहरण देखिए - इच्छायारमहत्थं, सुत्तठिओ जो ह छंडए कम्म। ठाणे ठिय सम्मत्तं परलोय सुहंकरो होई।।14।। सु.पा. विज्जा - चित्तासोहि ण तेसिं, ढिल्लं भावं तहा सहावेण। विज्जदि मासा तेसिं, इत्थीसु ण संकया झाणं।।26।। सु.पा. 3. चारित्तपाहुड - इस पाहुड में 45 गाथाएँ हैं। बुद्धि, लज्जा, विज्जा, खमा, देही, गोरी, धत्ती, चुण्णा, छाया, कंति, महामाया आदि गाथाओं का प्रयोग है। यथा - बुद्धि गाथा देखें - णाणं दंसणसम्मं, चारित्तं सोहिकारणं तेसिं। _मोक्खाराहणहेडं, चारित्तं पाहुडं वोच्छे ।।2।। चा.पा. चारित्त पाहुड में विपुला छन्द का भी प्रयोग है - महिलालोयण - पुव्वरइ - सरण - संसत्त वसहि विकहाहिं। पुट्ठियरसेहिं विरओ भावण पंचावि तुरियम्मि।।35।। चा.पा. चपला - पव्वज्ज संगचाए पयट्ट सुतवे सुसंजमे भावे। होइ सुविसुद्धझाणं, णिम्मोहे वीयरायत्ते ।।16। चा.पा. पव्वज्ज संगचाए पयट्ट - इसमें चार गण हैं। द्वितीय और चतुर्थ गण में जगण (II) होने से चपला गाहा है। मुखचपला - इसमें चार गण होते हैं। द्वितीय और चतुर्थ जगण (151) युक्त होते हैं। इसके पश्चात् यदि गाथा की तरह ही दूसरा भाग हो वहाँ मुखचपला गाहा है। यथा - उच्छाह - भावणासं पसंससेवा सुदंसणे सद्धा। ण जहदि जिणसम्मत्तं, कुव्वंतोणाणमग्गेण ।।14। चा.पा.

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